गुरुवार, 10 मई 2012

हर सपना यहाँ टूट जाता है

पत्थरों की पहुँच हो गयी है आसमान तक
हर सपना यहाँ टूट जाता है

हवाओं में घुल रहा है सियासी जहर
आम आदमी का दम घुट जाता है

अफसरों की जेब में आराम फरमाता है राहत राशि का पैसा
गरीब आदमी यहाँ भी छूट जाता है

इक कोहराम मचने की चाह जन्म लेती है जेहन में
जब सब्र का पैमाना फूट जाता है

दूसरों की भलाई में लगा है 'वो' जब भी
उसका कोई अपना रूठ जाता है

जो भी बनते है 'कर्ण' यहाँ
उनका कवच कुंडल लूट जाता है

ब्रजेश कुमार सिंह "अरहान"