पत्थरों की पहुँच हो गयी है आसमान तक
हर सपना यहाँ टूट जाता है
हवाओं में घुल रहा है सियासी जहर
आम आदमी का दम घुट जाता है
अफसरों की जेब में आराम फरमाता है राहत राशि का पैसा
गरीब आदमी यहाँ भी छूट जाता है
इक कोहराम मचने की चाह जन्म लेती है जेहन में
जब सब्र का पैमाना फूट जाता है
दूसरों की भलाई में लगा है 'वो' जब भी
उसका कोई अपना रूठ जाता है
जो भी बनते है 'कर्ण' यहाँ
उनका कवच कुंडल लूट जाता है
ब्रजेश कुमार सिंह "अरहान"
हर सपना यहाँ टूट जाता है
हवाओं में घुल रहा है सियासी जहर
आम आदमी का दम घुट जाता है
अफसरों की जेब में आराम फरमाता है राहत राशि का पैसा
गरीब आदमी यहाँ भी छूट जाता है
इक कोहराम मचने की चाह जन्म लेती है जेहन में
जब सब्र का पैमाना फूट जाता है
दूसरों की भलाई में लगा है 'वो' जब भी
उसका कोई अपना रूठ जाता है
जो भी बनते है 'कर्ण' यहाँ
उनका कवच कुंडल लूट जाता है
ब्रजेश कुमार सिंह "अरहान"