मंगलवार, 17 सितंबर 2013

कवि


मैं लिखता था तुम्हे प्रेम पत्र
पर दे नहीं पाता  था

मैं सोचता था
क्यूंकि मैं कवि हुआ करता था
और इसलिए ये लाजिमी था की मैं सोचूं

मैं सोचूं की बादल बादल नहीं होते
बादल रेत के वो घरौंदे होते हैं
जो पानी की एक लहर से फना हो जाते है
आसमा आसमा नहीं होता
एक बड़ा सा जादुई  आईना होता है
जिसमे दिखाई देती है हमारी आकांक्षाएं
परिंदों के रूप में
इंसान इंसान नहीं होता
खिलौना होता है
भगवान् नाम के एक बच्चे का खिलौना
जो दुनिया नाम का  एक घरौंदा बनाकर
छोड़ देता हैं इंसान को खेलने के लिए


















मैं सोचता था
क्यूंकि मैं कवि हुआ करता था
मैं लिखता था तुम्हे प्रेम पत्र
पर दे नहीं पाता  था
क्यूंकि मैं सोचता था
सिर्फ सोचता था
मैं सोचता था की
मैं तुम्हे लिखूं ढेर सारे प्रेम पत्र और भूल जाऊं
और मेरी माँ बेच दे सारे ख़त कबाड़ीवाले को रद्दी समझकर
और कबाड़ी वाला बेच दे ये ख़त उस दुकानदार को
जिसके दूकान से तुम लेती हो घर का राशन
और एक दिन वो दुकानदार तुम्हे दे दे कोइ सामान
उसी प्रेमपत्र में लपेट के
और तुम्हे पता चल जाए
की तुम्हारे घर के बगल में रहनेवाले लड़के की ख़ामोशी में
बहुत प्यार है बहुत तड़प है

मैं सोचता था
की मैं एक दिन कागज पर प्रेम लिखकर
फ़ेंक दूंगा तुम्हारे घर के अहाते में
जहाँ तुम उगाती हो गुलाब के फूल
और इन्तजार करूंगा उस दिन का
जब तुम्हारे उस अहाते में उगेगा एक पौधा
जिस के हर पत्ते पर एक प्रेम पत्र लिखा होगा

मैं सोचता बहुत था
क्यूंकि मैं कवि हुआ करता था
लेकिन मैं वही सोचता था
जो  मैं सोचना चाहता था
इसलिए मैंने कभी ये नहीं सोचा था की
उस दूकान से सामान खरीदने के बाद
घर आकर तुम फेंक देती होगी वो कागज़ कूड़ा समझकर
बिना पढ़े
और
तुम्हारे घर का दरवाजा खुला होने के कारण
एक दिन चर गयी होंगी बकरियां
मेरे सारे प्रेम पत्र

मैं सोचता था
क्यूंकि मैं कवि हुआ करता था
और मैं कवि हुआ करता था
इसलिए नाकाम हुआ करता था

अराहान