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सोमवार, 29 जून 2015

उन दिनों




उन दिनों कुत्ते ज्यादा भौंकते थे रातों में
प्यार के लिए
*शहर के दुकानदार बेच रहे थे 100 रुपये में दो चादर
*चोर उन दिनों माँओं को बताते थे पुलिस की नौकरी के बारे में
*मैट्रिक इंटर के लड़के छतों पर बिना सीढ़ी के चढ़ते हुए गिरा करते थे
*मेडिकल के दुकानों में गर्भनिरोधक गोलियां धड़ल्ले से मांग लेती थी लड़कियां
*उन दिनों कंपनियां माँ के हाथ के खाने के साथ माँ का प्यार भी डब्बो में बेचने लगी थी
*टीवी पे बिगबॉस देख के दरवाजे बन्द कर दिए जाते थे रातों में
उन्ही दिनों जब कुत्ते बहुत भौंका करते थे रातों में
और सौ रुपये में मिलती थी दो चादर
मेडिकल स्टोर से धड़ल्ले मांग लेती थे गर्भनिरोधक गोलियां
प्यार का बाजार बहुत फला फूला
और कुछ लोगो का उठने लगा भरोसा प्यार से

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

बोरवेल में सच का गिरना


दुनिया कह रही थी
"बोरवेल में बच्चा गिरा है"
दुनिया अपने हाथ कमीज में छिपा कर कह रही थी
"हमारे हाथ कटे है"
दुनिया चिल्ला चिल्ला कर उस से कह रही थी
"उतरो नीचे, तुम्हारे पास कमीज नहीं"
"तुम्हारे हाथ दीखते हैं"
वो दुनिया से नही डरता था
दुनिया की परवाह नही थी
पर बच्चे के बारे में सोच कर उतरा
उसे सच्चाई पसंद थी
गहराई पसंद थी
उसे अँधेरे में रौशनी की तलाश पसंद थी
वो उतरा
बोरवेल में उतरता गया
उसे कोई बच्चा ना मिला
पर गहराई में उतरने पर उसे सच्चाई मिली
वो सोचा
दुनिया को गलतफहमी हुयी है
"कोई बच्चा नहीं गिरा है बोरवेल में"
"हाँ पर सच्चाई जरूर दफ़न है इस बोरवेल में"
वो नीचे से चिल्लाया
"यहां कोई बच्चा नहीं है"
वो चिल्लाता रहा
"यहाँ कोई बच्चा नहीं है"
उसकी आवाज टकराती और लौट आती
थक कर जब वो चुप हुआ तो,
उसे दुनिया के चिल्लाने की एक धीमी आवाज सुनाई दी
"बोरवेल में शराबी गिरा है"

भूख

टिन के फूटे कनस्तर में थोड़ा सा आटा है
पेट में बरसो पुरानी भूख है
एक लड़की चुराती है आटा
एक लड़का चुराता है भूख
टिन के उस फूटे कनस्तर में अब भी थोडा सा आटा है
पेट की भूख ने बस ख़ुदकुशी कर ली है

मैं झूठा हूँ, और खुश हूँ

मैं खुश नहीं हूँ
वजहें काफी हो सकती है खुश रहने की

एक बूढी हो चुकी किताब पे जिल्द लगाने से
मुझे मिलनी चाहिए ख़ुशी
पर इस किताब के फटते पन्नों को देख दुःख नही होता
शायद मैंने पतंगे बहुत काटी है
पतंगों की डोर से
पतंगे बनायीं भी बहुत है
किताबे फाड़ के

खुश रहने के लिए बहुत झूठ बोलना चाहता हूँ
पर सच्चाई हर पल गर्भवती हो जाती है
सच्चाई के पेट पे लात मारने के लिए हिम्मत चुराई जाती होगी कहीं
पर मैं चोर नहीं, मैं हत्यारा नहीं
हाँ पर मैं झूठा हूँ
और मैं खुश हूँ

रविवार, 19 अक्तूबर 2014

तुम

तुम हो
किसी प्राचीन कालीन शिला पे
किसी अजीब भाषा में लिखे अभिलेख की तरह
जिसे मैं किसी पुरातत्त्ववेत्ता की तरह
समझने की कोशिश करता हूँ 
पर समझ नहीं पाता
मैं तुम्हे मैं रख देना चाहता हूँ
अपने ह्रदय के संग्रहालय में
हमेशा के लिए संभालकर
इस उम्मीद के साथ की
दिल की धड़कने बंद होने से पहले
मैं समझ जाउंगा तुम्हे

आईना

तुम्हारा दायीं तरफ एक बड़ा आईना है 
तुम्हारे बायीं तरफ भी उतना ही बड़ा आईना है 
मान लो तुम्हारे दायीं तरफ के आईने को मैं जिंदगी कहता हूँ 
और बायीं तरफ के आईने को मौत 
अब जरा करीब से देखो दोनों आईने में बारी बारी 
तुम कितनी दफा मरते हो
कितनी दफा जीते हो
जिंदगी नामक आईने में है मौत
मौत नामक आईने में है जिंदगी
और उन्दोनो आईनो में हो तुम खड़े बेवक़ूफ़ की तरह
जिंदगी और मौत को समझने की कोशिस करते हुए
एक भ्रम एक illusion में गहराई तक डूबते हुए

परिया

रात के दो बजे आवारा लड़का बैठा है छत की मुंडेर पर
रोज की तरह फिर से घर छोड़ देने की धमकी देकर
भूखे प्यासे आसमान को ताकते हुए
लड़का आसमान को ताककर
अपने मोबाइल पर गूगल करता है fairies 
जानना चाहता है की कैसी दिखती है परियां
लड़के के 2G मोबाइल पर गूगल सर्च कम्पलीट होने से पहले
बाजू वाले छत से कूद के आती है एक लड़की
हाथो में दो रोटी और सब्जी लिए
उस दिन लड़के को गूगल के सर्च रिजल्ट आने से पहले पता चल जाता है
की कैसी दिखती हैं परियां
परिया भी आम लड़कियों की तरह आती है दुपट्टे ओढकर
सोती रातो में सबसे नजरें बचाकर
बिना पंखो के उड़कर
परिया भूखे पेट सोती हैं
औरो को अपने हिस्से का खाना खिलाकर

कविता


जो तुम्हारे काजल से घुलकर बन गयी स्याही
और लिखने लगी विरह की एक अंतहीन कविता

मैंने यूँ तो चूमा है कई दफा तुम्हारे चेहरे को
पर अफ़सोस उस दिन न छु सके मेरे होठ तुम्हारे आँखों को
अगर उस दिन मैं तुम्हे चूमता तो
शायद मिटा देता अपने होठो से वो विरह की कविता
लिख देता तुम्हारे चेहरे पर मुस्कराहट

देखो ना मैं वक्त के उसी जाल में उलझा
अब तक लिख रहा हूँ कविता
बस जब कभी तुम्हे तुम्हारे चेहरे पर मुस्कराहट लिखा दिखाई दे
मुझे इत्तेलाह करना
मैं उस दिन तोड़ लूँगा अपनी कलम

ऐ चाँद सुन जरा



ओ बीती हुई रातो के बासी चाँद
ज़रा झाँक के देख जमीन पे
क्या उस पागल लड़की ने फिर से जला लिए है अपने हाथ
तारे गिनते हुए
या फिर से किसी टूटते तारे ने, 
तोड़ा है उसकी बंद आँखों में सजता कोई सपना
या फिर से कोई मतवाली हवा
उड़ा ले गयी है उसके सारे प्रेम पत्र
और वो ढूंढ रही है कागज़ के गीले टुकड़ो को
हाथो में जुगनू पकड़ कर
ओ जागती रातो के ऊबते पहरेदार
जरा नजरे फेर उसके घर की खिड़की पर
और बता
की क्या अब भी उसकी झील सी आँखें
नम होती है किसी के इन्तजार में
क्या अब भी दौड़ पड़ती है वो दरवाजे की तरफ
हलकी सी आहट पर
क्या अब भी भीगा भीगा सा होता है उसके दुपट्टे का कोना
क्या अब भी उसके आंसू रुस्वा कर जाते हैं उसके काजल को
ओ आसमान के सबसे फरेबी आशिक
जरा बता दे उस पागल लड़की को
की मैं प्रतिक्षण उसकी तरफ बढ़ रहा हूँ
माना हूँ मैं अब भी उस से सैकड़ों प्रकाश वर्ष दूर किसी और आकाशगंगा में
पर देखना एक दिन जरूर टूट की गिर पडूंगा उसके घर के अहाते में
किसी भटके हुए उल्कापिंड की तरह

बेसुध रातों के आवारा नोट्स

यहाँ हंसने के लिए बस अपना चेहरा था 
और सबके माथे पर चिपका था आईना 

रात जब भी खांसते हुए, छाती पे जाते है हाथ 
हथेलिय महसूस करती है पुराने जख्मो के निशान 
शराब में डूबा मन, 
डायरी में लिख देता है की 
पिछली जन्म में मैंने किया था प्यार 
या फिर
मेरी यादाश्त बहुत कमजोर है
याद नहीं हो पाते पांच फोन नंबर
की हर नंबर डायल करने के बाद
प्यार में पागल किसी लड़की का प्रेत कहता है
"डायल किया गया नंबर मौजूद नहीं"

तकिये के नीचे शायद अब उतनी जगह बची नहीं
की दो लोग कर ले आराम बाहों में बाहें डाल कर
रो सके, हंस सके या गा सकें कोई फ़िल्मी गीत
इसलिए पहले जहाँ होते थे
पागल लड़कियों के गुलाबी ख़त
अब वहा नींद की गोलियां बना चुकी है अपनी सरकार

एक दिन गूंगा रहने में क्या जाता है
की जो लड़कियां रुमाल पर कढ़ाई कर के लिखती थी मेरा नाम
अब वो खरगोशों की मौत पर आंसू नहीं बहाती
अब वो नोच लेती है उन खरगोशो के चमड़े से रुई
और कानों में खोसकर बहरी हो जाती हैं

रात चाँद आसमान में उल्टा टंगा दिखाई देता है
वो पागल लड़की फिर से पहने घूम रही है झुमके उलटे कर के
अब उस पागल लड़की को रोना चाहिए
की अब इस से ज्यादा बंजर नही होना चाहिए किसी लड़के का दिल
अब इस तरह सूखने नहीं चाहिए फसले मोहब्बत की
अब इतनी बारिश तो होनी चाहिए की
लबालब भरा रहे किसी शराबी का ग्लास
और वो यूँ ही नशे में पागल होके
लिखता रहे कवितायेँ 

गुरुवार, 15 मई 2014

पर्स

तुम्हारा पर्स 
हाँ तुम्हारा पर्स चोरी हो चूका है 
जिसमे थे कुल ३०० रुपये
एक रेल टिकट:
उस शहर के लिए जहाँ जिन्दा है एक ही शख्स तुम्हारे इंतजार में 
एक बार  का बिल:
जहाँ की शराब अब तक तुम्हे मदहोस नहीं कर पाती 
घर के राशन का लिस्ट:
जिसमे पहले नंबर पे है भूख मारने  की दवा  
एक एटीएम कार्ड: 
जिसका पिन भूल चुके हो तुम 
किसी के घर का पता
जो लिखा है किसी अजीब लिपि में  
एक दवाई  की पर्ची
जिसमे दर्ज थे उन दवाओ के नाम, जिनके इंतजार में एक बूढी औरत खड़ी होगी छत पर 
एक प्रेम पत्र 
जिसकी लिखावट से पता चलता होगा  की कांपे होंगे लिखने वाले के हाथ 
और एक लड़की की तस्वीर 
जिसे देखकर कोई ये नहीं कह सकता की लड़की कभी रोती भी होगी 

बड़े बेवकूफ इंसान हो तुम  
अपनी पूरी दुनिया लेकर घूमते हो पर्स में 
और देखते भी नहीं की इस दुनिया के हर दीवाल, हर बैनर, हर होर्डिंग पर लिखा है 
"चोरो और जेबकतरों से सावधान" 

बुधवार, 14 मई 2014

नाश्ता

 

तुम बड़ी देर से करती हो नाश्ता
हमेशा की तरह
मुझे दरवाजे तक छोड़ के आने के बाद ही,
रखती हो अपने प्लेट में
दो बासी रोटी और एक आचार

मैं रोज की तरह
कुछ देर रुक कर
खिड़की से
चुपके से देखता हूँ मैं तुम्हे
मुस्कुराते हुए
सुखी रोटी को निवाला बनाते हुए 

रोज की तरह मैं नाश्ते के बाद हर रोज खाता हूँ एक कसम
की अगले दिन तुम्हारे प्लेट में नहीं होगी कोई बासी रोटी

लेकिन मैं निगल नहीं पाता हूँ वो एक छोटी सी कसम
एक उलटी में उगल देता हूँ
शायद मुझे पता नहीं
की एक बासी रोटी पचाई जा सकती है
पर एक झूठी कसम नहीं
अरहान

अश्लील कहानी

अश्लील कहानी 


कहानी के उस हिस्से में 
लड़की उतार देती है अपना सबकुछ 
सिवाए अपने कपड़ो के 
अपनी इच्छा 
अपने सपने
अपना आज 
अपना कल 
अपनी आत्मा 
अपनी जिंदगी
परत दर परत खोल देती है वो सबकुछ
सौंप देती है उस
कलमकार को
जिसकी इस कहानी को अश्लील समझकर
ख़ारिज कर देते है संपादक प्रकाशित करने से


अराहान 

मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

तुमसे प्यार करना और वफ़ा की उम्मीद रखना

तुमसे प्यार करना 
और वफ़ा की उम्मीद रखना 
ठीक वैसा ही है जैसे 
पानी की सतह पर लिख देना एक कविता 
और उम्मीद करना 
की मछलियाँ इस गाकर सुनाएंगी 

तुमसे प्यार करना 
और वफ़ा की उम्मीद रखना 
ठीक वैसा ही है जैसे 
आस्तीन में पालना एक सांप
और उम्मीद करना की वो डसेगा नहीं

तुमसे प्यार करना
और वफ़ा की उम्मीद रखना
ठीक वैसा ही है जैसे
एक बोतल में बंद कर एक प्रेम पत्र
फेंक देना समंदर में
और उम्मीद करना की वो मुझे मिल जायेंगे

तुमसे प्यार करना
और वफ़ा की उम्मीद रखना
ठीक वैसा ही है जैसे
रेत पर लिख देना ज़िन्दगी
और उम्मीद करना की जिंदगी मिटेगी नहीं

तुमसे प्यार करना
और वफ़ा की उम्मीद रखना
ठीक वैसा है जैसे
पी लेना गिलास भर जहर
और उम्मीद करना की प्यास बुझ जाएगी

तुमसे प्यार करना
और वफ़ा की उम्मीद रखना
ठीक वैसा ही है जैसे
कागज़ की नाव पर समंदर में उतरना
और उम्मीद करना की किनारा मिल जायेगा 

सोमवार, 21 अप्रैल 2014

उम्मीद

बहुत दूर, 
गहराई में उतर के देखो 
एक ख्वाबगाह है 
जहां उम्मीदों के Ghetto में 
ज़िंदा है मेरी मोहब्बत 
Below Poverty Line के नीचे 
अपनी खुरदुरी उँगलियों से 
Forbes मैगजीन के पन्ने पलटते 
तुम्हारे जिंदगी की कंपनी में 
सबसे बड़ा शेयरहोल्डर बन ने के सपने देखते हुए 

अराहान

बुधवार, 16 अप्रैल 2014

बचा खुचा सामान

बस बचा खुचा हमारे पास एक 
आसमान है 
जिसको रोज रात देखकर ये तसल्ली कर लेते हैं की 
वो वहीँ आसमान है जो तुम्हारे ऊपर है 
मुट्ठियों में भर लेते है हर रात 
तुम्हारे शहर से आने वाली हवा 
वो हवा, जो उतरने से मना कर देती है मेरे फेफड़ों में 
तुम्हारी तरह ये कहते हुए की 
"मुझे सिगरेट की गंध से नफरत है" 

कुछ बासी उखड़ी बेढब सी कवितायेँ हैं
जिनमे तुमको तुमसे चुराकर रक्खा है हमने
शाम किसी छत पर बैठकर खुदको सुनाने के लिए

अलमारियों के बीच, कहीं किसी कोने में
जिन्दा है एक ओल्ड मोंक की बोतल
जिसको तय करना है मेरे हलक से एक रास्ता
आंसू बन ने के लिए

हथेलियों में बाकी है
अभी मेरे किस्मत की बागी केंचुलियाँ
जिनके टुकड़े ढूँढ ढूंढ कर शायद तुम्हारी किस्मत
मिल जाये मुझसे

बस बचा खुचा इतना ही हैं मेरे पास
और हाँ तुम्हारी दी हुई एक डायरी भी
जिसमे दर्ज है मेरी बर्बादी का अफसाना

अराहान

तुम नहीं समझोगी,

तुम नहीं समझोगी,
कितना कठिन होता है
आँखों में शराब भर के
कभी ना रोने की कसम खाना
पलकों के पांव भारी हो जाते हैं
ख्वाबों के छूने भर से
सोचो कितना कठिन होता होगा
एक आने वाले कल को गड्ढे में गिराना
तिलिस्म बुनती रहती है घडी
बीते लम्हों के धागों से
बहुत मुश्किल होता है
वक्त से पीछे चले जाना
तुम नहीं समझोगी
कितना कठिन होता है
स्याह रातो के कैनवास पर
जुगनुओं को मारकर तस्वीरें बनाना
एक पल के लिए तो रौशन हो जाता है घर मेरा
मोमबत्तियों के रोने से
सोचो कितना कठिन होता होगा
लोगो को उम्र भर के लिए रुलाना
जिंदगी बन के दौड़ती है रगों में बेबसी
तुम नहीं समझोगी
कितना कठिन होता है
यूँ ही बागी बन जाना
अराहान

मंगलवार, 18 मार्च 2014

तेरी यादें

आज भी झीने से उतर के 
चली आती है कमरे में तेरी यादें 
बिन बुलाये जुगनुओं की तरह 
अँधेरे में चमकती हुयी 
उतार देती है दीवारों पे 
गुजरे जमाने की कुछ धुंधली तस्वीरें 
कुछ बासी पलों की 
उखड़ी उखड़ी से लकीरे 
जिनमे से झांकती है एक गोरी सी लड़की 
अपनी नम आँखों से मुझे देखती है 
और हर बार पूछती है
रेलवे की पटरियां
अक्सर लोगो जुदा क्यूँ करती है
शहर से दूर जाने वाली ट्रेनें भी तो वापस लौटती हैं
फिर तुम क्यूँ नहीं लौटे अबतक
मैं कुछ बोल नहीं पाता हूँ
बस जेब से उसी लड़की की एक साफ़ तस्वीर निकाल के
देखता हूँ और
रोज की तरह घर से दूर निकल जाता हूँ
कुछ टूटी हुयी रेल की पटरियों को जोड़ने के लिए

अरहान

विंडो सीट

मुझे पता है
ट्रेन की खिड़की से तुम दिखाई नही दोगी
पर हर बार मैं ट्रेन में चुनता हूँ 
एक विंडो सीट 
ताकि मैं देख सकूं बाहर 
पीछे छूटते पेड़ों को 
इमारतों को 
जंगलों को 
हर उस चीज को जो मुझसे छूटती जा रही है
ट्रेन के चलने से 
मुझे महसूस होता है तुम्हारा अक्स
उन हर चीजों में जो मुझसे छुट्ती है
बिछड़ती है
ये महसूस कराती है की मैं तुमसे दूर हूँ बहुत दूर
और मुझे रोक देनी चहिये
दुनिया की सारी ट्रेने
अपने लाल खून से

अराहान

मधुशाला

एक ढलती शाम को 
नहीं उतार सकता मैं कॉफी के मग में 
या फिर सीने का दर्द मैं 
कम नहीं कर सकता चाय के प्याले से 
ये मेरी मज़बूरी है 
या मेरी खुद कि रजामन्दी 
कि हर उदास शाम को 
मधुशाला बुला लेती है 
और मैं ठुकरा नहीं सकता उसका न्योता