खिड़कियों से झाँककर देखे गए
सपने
सपने नहीं होते
ये हकीकत का ही हिस्सा होते
है
इन सपनो में नहीं दिखाई
देती है खूबसुरत परियां
ना ही कोई उड़ने वाला घोड़ा
दिखाई देता है
खिड़कियों से झांककर दखे गए
सपनों में
एक नाला होता है
एक गंदा सा, रुका सा नाला
जिसके किनारे बैठ के रोता
है एक छोटा बच्चा
शायद इसलिए क्यूंकि खो चुका
होता है उस बच्चे के एक सिक्का
और उस एक सिक्के के खोने से
खो जाती है उस बच्चे की खुशियाँ
खिड़कियों से झांककर दखे गए
सपनों में
दिखाई देता है एक बुढा बरगद
का पेड़
जिस पर एक गौरय्ये का जोड़ा बना
रहा होता है एक घोसला
तिनका तिनका चुनकर लाते इन
परिंदों को गुस्सा नहीं आता है तुफानो पर
टूटता नहीं है इनका हौसला
भले ही टूट जाता है हर बार
इनका घोसला
खिड़कियों से झांककर दखे गए
सपनों में
दिखाई देती है एक जद्दोहद
एक तड़प
एक दर्द
एक आकांक्षा
इन सपनो में दिखाए देने
वाला रुका हुआ नाला भी इशारा करता है चलते रहने का
उस बच्चे के आंसू भी देते
हैं हिदायत हमेशा हँसते रहो
टूटते घोसले भी सिखाते हैं संवरने
का हुनर
खिड़कियों से झांककर दखे गए
सपने,
सपने नहीं होते
ये होते हैं हमारे हकीकत का
हिस्सा
जिसे हम आमतौर पर जिंदगी
कहते हैं
ब्रजेश कुमार सिंह “अराहान”
3.08.2012
ब्रजेश कुमार सिंह “अराहान”
3.08.2012