रविवार, 1 जुलाई 2012

कमल के फूल

देखो, खिलें हैं कमाल  के फूल
इस गंदे तालाब में
ये हमें बताना चाहते हैं
की इनकी जिद के आगे टिक नहीं पाया
इस तालाब का गंदा पानी
फीकी ना कर सकी इनकी गुलाबी रंगत
किनारों की ये मटमैली मिटटी
फर्क ना पड़ा इनकी सुगंध को
मरी हुयी मछलियों की बू से
बाँध ना सकी इनको
यहाँ वहाँ उग आईए जल्कुम्भियों की लताएँ
देखो ये बता रहे हैं की वे जी सकते हैं एक जिंदगी
इस मृतप्राय तालाब में भी
तमाम उलझनों और रुकावटों का सामना करते हुए
बिना किसी परेशानी और दिक्कत के

तो चलो अब तुम भी उतार फेंको अपने सर से
ये मटमैली चादर डर की
उखाड फेंको जड़ से
रिवाजों और समाजों की इन लताओं को
जो लिपटी हुयी है तुमसे
साँसों में भर लो मुट्ठी भर सुगंध इस नीले आसमान की
और चली आओ मेरे पास
हमें अब खिलना है इस कमाल की तरह
इस दलदल में

ब्रजेश कुमार सिंह "अराहान"

२९ मई २०१२ 

ये जरूरी नहीं

ये जरूरी नहीं की हर इंसान करे एक शख्स से ही प्यार
ये भी मुमकिन है की हम एक बार में पड़ें,
एक से ज्यादा लोगों के प्यार में
बराबर करें प्यार अपनी सभी प्रेमिकाओं को
निभाएं उनके वादें
बिना किसी को रुलाये
बिना किसी को दुःख पहुंचाए
बाँटें सभी को अपना वक्त बराबर हिस्सों में
गलत नहीं है कुछ इसमें
अगर हम गौर करें इस बात पर
खुले दिमाग से, ईमानदार होकर
ऊँची कर लें अपनी सोच
और विश्लेषण करें इस बात का
परम्पराओं को ताक पर रखते हुए
हम पायेंगे की कुछ गलत नहीं है इसमें
कोई घटियापन नहीं है
कोई कुंठा नहीं है इसके पीछे
ये एक सच्चाई है जो इस बात से वास्ता रखती है की
"प्यार बांटने से बढता है"

ब्रजेश कुमार सिंह "अराहान"

३० जून २०१२