देखो, खिलें हैं कमाल के फूल
इस गंदे तालाब में
ये हमें बताना चाहते हैं
की इनकी जिद के आगे टिक नहीं पाया
इस तालाब का गंदा पानी
फीकी ना कर सकी इनकी गुलाबी रंगत
किनारों की ये मटमैली मिटटी
फर्क ना पड़ा इनकी सुगंध को
मरी हुयी मछलियों की बू से
बाँध ना सकी इनको
यहाँ वहाँ उग आईए जल्कुम्भियों की लताएँ
देखो ये बता रहे हैं की वे जी सकते हैं एक जिंदगी
इस मृतप्राय तालाब में भी
तमाम उलझनों और रुकावटों का सामना करते हुए
बिना किसी परेशानी और दिक्कत के
तो चलो अब तुम भी उतार फेंको अपने सर से
ये मटमैली चादर डर की
उखाड फेंको जड़ से
रिवाजों और समाजों की इन लताओं को
जो लिपटी हुयी है तुमसे
साँसों में भर लो मुट्ठी भर सुगंध इस नीले आसमान की
और चली आओ मेरे पास
हमें अब खिलना है इस कमाल की तरह
इस दलदल में
ब्रजेश कुमार सिंह "अराहान"
२९ मई २०१२
इस गंदे तालाब में
ये हमें बताना चाहते हैं
की इनकी जिद के आगे टिक नहीं पाया
इस तालाब का गंदा पानी
फीकी ना कर सकी इनकी गुलाबी रंगत
किनारों की ये मटमैली मिटटी
फर्क ना पड़ा इनकी सुगंध को
मरी हुयी मछलियों की बू से
बाँध ना सकी इनको
यहाँ वहाँ उग आईए जल्कुम्भियों की लताएँ
देखो ये बता रहे हैं की वे जी सकते हैं एक जिंदगी
इस मृतप्राय तालाब में भी
तमाम उलझनों और रुकावटों का सामना करते हुए
बिना किसी परेशानी और दिक्कत के
तो चलो अब तुम भी उतार फेंको अपने सर से
ये मटमैली चादर डर की
उखाड फेंको जड़ से
रिवाजों और समाजों की इन लताओं को
जो लिपटी हुयी है तुमसे
साँसों में भर लो मुट्ठी भर सुगंध इस नीले आसमान की
और चली आओ मेरे पास
हमें अब खिलना है इस कमाल की तरह
इस दलदल में
ब्रजेश कुमार सिंह "अराहान"
२९ मई २०१२