बुधवार, 26 जून 2013

उलटी दिशा

एक अंधेरे कमरे में भी
लिखी जा सकती हैं जलती हुयी कवितायेँ
याद की जा सकती हैं पुरानी प्रेमिकाएं
नयी प्रेमिका के बाहों में सर रखकर
पीयी जा सकती है मा की लोरियां
आंसुओं और शराब के कॉकटेल में
याद किया जा सकता है बचपन
अधेड़ावस्था की ऊब में
तोड़े जा सकते हैं रिश्ते
जुबान के थोडा खुलने से
भुलाये जा सकते हैं साथी
साथ अकेलेपन के मिलने से
किये जा सकते हैं बहुतेरों ऐसे काम
उन परिस्थियों में भी
जिनमे हवा बहती है उलटी दिशा में

अराहान


शनिवार, 22 जून 2013

मरीचिका

नींद से जागी मेरी आँखें
कर रही है पीछा मेरे बेलगाम सपनो का
अमादा है मचाने को एक कोहराम
मेरी आँखें हो रही हैं हलकान दौड़ दौड़कर
इसी भागम भाग में मैं
पता नहीं कब चला आया
यथार्थ के धरातल से कोसों दूर
फंस गया मरीचिकाओं के कंटीलीदार झाड़ियों में
पता नहीं कब और कैसे
चुभ गया एक कांटा मेरी आँखों में
पता नहीं कब और कैसे
गुम  हो गए मेरे सपने

अराहान 

रोटी

उस समय आंदोलन नाम की हवा बह रही थी 
जब वो औरत चूल्हे की भडकती आग पर रोटियां सेंक रही थी 
रह रह कर पार्श्व में सुनती थी लोगो के मूह से 
किसी आचार के मिटाने के बारे में किये गए नारे 
पर उसका सारा ध्यान रोटी पर था और पोटली में रखे गए आचार पर 
जो वो अपने बच्चे को खिलाने वाली थी 
उसके चेहरे पर आया था दुनिया फतह करने जैसा भाव 
जब उसने अपने बच्चे को रोटी थमाई 
बच्चा रोटी लेकर खेलने लगा 
उस बच्चे की तरह के बच्चों को खिलौना नहीं मिलता
इसलिए वो खेलते हैं हाथ में आयी किसी भी चीज से
बच्चा रोटी को दूरबीन बना कर खलेने लगा
शायद वो अपनी माँ को दिखाना चाहता था की
वो उसकी एक रोटी से ही अपनी सारी जरूरतें पूरी कर सकता है
उसकी माँ उसे प्यार से डांटती है
"रोटी खेलने की चीज नहीं"
पर बच्चा गैलीलियो बन चूका था
वो उस रोटी की दूरबीन से वो सब कुछ देखना चाहता था
जो वो रोज चाहर भी नहीं देख पाता
पर बच्चे को उस दूरबीन से दिखाई देते हैं
बड़ी बड़ी गाड़ियों में उसकी तरफ आते कुछ लोग
शायद उसकी रोटी छिनने वाले लोग
बच्चा झट से रोटी खा लेता है
पसर जाती है एक ख़ामोशी थोड़ी देर के लिए
उसके माँ और उसके बीच
जिसे अगले ही पल तोड़ देती है
भीड़ से उठती एक नारे की आवाज
"गरीबो की रोटी मत छीनो"

अरहान 

क़यामत का दिन

जिस तरह जमीन देखती है आसमान की तरफ
और आसमान देखता है जमीन की तरफ
ठीक उसी तरह हम दोनों
एक दुसरे को देखते हैं
दिओन में मिलने का ख्याल पाले हुए
दुनिया भर की तमाम मजबूरियों का मलाल पाले हुये
हम दोनों जानते हैं की
क़यामत से पहले आसमान और जमीन एक नहीं होने वाले
इसलिए हम दोनों इन्तेजार कर रहे हैं
अपनी अपनी छत के मुंडेरों पर बैठकर
कब आएगा क़यामत का वो दिन
जब हम  मिलेंगे
जमीन और आसमान की तरह

अराहान 

One day

One day
We will dine together
in the courtyard of our heart
will feed each other
with our smile
will walk on the green grasses
holding each others hands
covering miles and miles

Arahaan 

दोषी

मैंने तुम्हे भुला दिया है
निकल फेंका है तुमको
अपनी ज़िन्दगी के हर कोने से
अप तुम्हारी खबर नहीं होती है सुर्ख़ियों पर
मेरी ज़िन्दगी के अख़बार में
पर ना जाने क्यूँ कब और कैसे
तुम्हारी यादें
डेरा जमालेती है मेरे सिराहने में
ना जाने कब दोस्ती का लेती हैं मेरे सपनों से
और ना जाने कब आँखों के सामने
उतर आता है तुम्हारा हसीं चेहरा
समझ नहीं आता है की मैं किसे दोषी ठहराऊं
अपने सपनो को
या तुम्हारी यादों को

अरहान 

तुम मत रोना

तुम मत रोना
मेरे मरने पर
मैं मरने के बाद
नहीं देख पाउँगा तुम्हे
पर हाँ जबतक मैं ज़िंदा हूँ
तब तक होती रहना परेशान
मेरी नामौजूदगी पर
मेरी गुमशुदगी पर
मैं तुम्हे खुदको ढूंढते हुए देखूंगा
तो मुझे अच्छा लगेगा

अराहान

सच

मैं झूठ नहीं बोलूँगा
की तुम मेरी पहली प्रेमिका हो
पहली बार मैंने किसी से प्यार किया
या फिर मैं ये भी नहीं बोलूँगा
की मैं तुम्हारे लिए चाँद तोड़ सकता हूँ
समंदर से मोती ला सकता हूँ
इन्द्रधनुस से रंग चुरा सकता हूँ
ना ही मैं तुम्हारे लिए कवितायेँ लिख सकता हूँ
ना ही तुम्हारी खूबसूरती पर कसीदे पढ़ सकता हूँ
बस मैं एक सच कह सकता हूँ
की मैं तुमसे प्यार करता हूँ
और तुम्हारे आंसुओं को तुम्हारे आँखों में आने से पहले
रोक सकता हूँ

अराहन 

पुरानी कविता

कल मैंने बेच दी अपनी एक पुरानी  कविता
जिसमे तुम थी
तुम्हारी हंसी थी
तुम्हारी पायल
तुम्हारे झुमके
तुम्हारे नखरे थे
तुम्हारी सीधी साधी
टेढ़ी मेढ़ी बातें थी
तुम्हारा रूठना था
तुम्हारा मनाना था
तुम्हारी कहानी थी
तुम्हारा अफसाना था
बेच दिया मैं कल ही इस कविता को
घर की और रद्दी चीजों के साथ
और इस तरह मैंने  सदा के लिए निकल फेंका तुम्हे
अपनी यादों से

अराहान 

जलपरी

वो आसमान में उड़ने वाली परी थी
उसे मुझसे प्यार हुआ
वो मेरी ज़िन्दगी में आ गयी
कुर्बान कर दिए उसने अपने पंख मेरे खातिर
छोड़ दिया उसने आसमान के बारे में सोचना
बस गयी मेरे संग जमीन पर
पर हर परियों की कहानी की तरह
वो हमेशा के लिए खुश ना रह पाई
एक दिन उसे जुदा होना पडा मुझसे
उसे भटकना पडा मेरी तलाश में
और भटकते भटकते वो एक समंदर में डूब गयी
पर वो मरी नहीं जलपरी बन गयी
सुना है वो अब भी रोती है मेरी याद में
इसलिए समंदर का पानी खरा होता है

अरहान

एश ट्रे

मेरे ख्वाब
मेरे सपने
मेरी दुनिया
उसकी यादें
उसकी बातें
अब सबकुछ यहीं रहा करती है
इस एश ट्रे में
सुलगती हुयी
सिगरेट के जले बुझे टुकड़ों के साथ

अराहान


थोड़ी सी जगह दे दो अपनी बाहों में

थोड़ी सी जगह दे दो अपनी बाहों में
लिपट कर तुमसे रोना है मुझे

पा लिया है सबकुछ तुम्हे पाकर
अब अपना सब कुछ तुम पर खोना है मुझे

टूट गए थे जो सपने तुमसे जुदा होकर
तुम्हारे आँखों से उन सपनों को अब संजोना है मुझे

रो लेने दो मुझे तुमसे लिपट कर
आंसुओं से अपने जख्मों को धोना है मुझे

रूठ जाने दो सावन को मुझे उस से क्या लेना देना
अब तुम्हारे मोहब्बत की बारिश में खुद को भिगोना है मुझे

काट ली है हमने वो बेचैन रातें हिज्र की
तुम्हारे नैनों के समंदर में खुद को डुबोना है मुझे

थोड़ी सी जगह दे दो अपनी बाहों में
लिपट कर तुमसे रोना है मुझे

अराहान 

ना फिर इधर उधर जवाब की तलाश में

ना फिर इधर उधर जवाब की तलाश में
कभी खुद से भी कुछ सवाल कर

जररी नहीं हर चीज को दिमाग से तौलना
कभी कभी अपने दिल का भी इस्तेमाल  कर

चीख चीख कर करता है चैन-ओ-सुकून की बाते
पहले अपने दिल में अमन बहाल कर

चल कर ले अपना सीना छलनी सच्चाई के तीरों से
और झूठ के महलों में रहनेवालों का जीना मुहाल कर

लोग तुझे जहन्नुम से भी खिंच लेंगे अराहान
पहले तू अपने नाम का जर्रा जर्रा बेमिशाल कर

अराहान 

अच्छा लगेगा

अपने अश्कों में तुमने छिपा रखा है अपना दर्द
कभी रो भी लो अच्छा लगेगा

तुम वक़्त के हाशिये पर लिखते हो अपनी कहानी
कभी वक़्त के साथ चलकर देखो अच्छा लगेगा

तुम पूछा करते हो उनसे अपने बारे में
कभी खुद से करो सवाल, अच्छा लगेगा

कितना खोया है तुमने पाने की कोशिश में
एक दफा बिछड़ों से गले लगाकर देखो, अच्छा लगेगा

ये किसके जाने का है मातम जो संजीदा हो
भुलाकर सबकुछ मुस्कुराकर देखो, अच्छा लगेगा

ज़माने में है और भी लोग किस्मत के मारे जो जीते हैं शान से
अंदाज उनलोगों का अपनाकर देखो अच्छा लगेगा

कुछ तुमको भी है दर्द, कुछ हमको भी है अराहान
आओ हमसे अपना दर्द बाँट कर देखो, अच्छा लगेगा

अराहान

कुचक्र

किसी बीते हुए काल में
मैं ढूंढ रहा हूँ अपना भविष्य
पिरामिडों में तलाश रहा हूँ
सुनहरे पलों की ममियां
पीले पत्तों से पूछ रहा हूँ
बहारों का बसेरा
मैं समय के एक कुचक्र में बैठा हूँ
और सामने गोल गोल घूम रहा है
सोने का पिंजड़ा

अराहान 

दस साल पहले

अगर मैं अभी अठारह का नहीं होता अट्ठाईस का होता
और तुमसे दस साल पहले प्यार करता तो
शायद हम दोनों के बीच प्यार कुछ ज्यादा ही गाढ़ा होता
तब तुम मुझे हर दस मिनट पर फ़ोन नहीं करती
और ये नहीं पूछती की मैंने तुम्हारे मैसेज का रिप्लाई क्यों नहीं किया
या फिर कभी ये नहीं पूछती की कल रात मैं दो बजे किस से बात कर रहा था
दिन में सौ बार नहीं बजता मेरा फ़ोन,
तुम्हारी आवाज को मुझतक पहुँचाने के लिए
शक का मैला पानी नहीं लगा पाता  दाग हमारे मोहब्बत के दामन में
तब तुम मुझे महीने में एक बार ख़त लिखती,
आयर ये बताती की मेरे बिना तुम्हारा मन नहीं लग रहा
मिलने का वक़्त मांगती मुझसे
किस शायरी की किताब से उठाकर दो चार शायरियां लिखती
और सत्तर के दशक के किसी नायिका की तरह बिता देती सारा वक़्त
ख़त के जवाब के इंतजार में
तुम्हारे जेहन मी आती ही नहीं तब कोई बेफजूल बात
जिनसे आये दिन तुम छलनी कर देती हो मेरा सीना
आज नजदीकियां हम दोनों को दूर कर रही हैं
पर आज से दस साल पहले दूरिय हमको नजदीक रखतीं

अराहान
  

इंतजार

एक बोलती आँखों और  लम्बे बालों वाली लड़की से
इश्क किया करता था
खामोश सा रहनेवाला
सहमा सहमा सा एक लड़का
लड़का, लड़की की बोलती आँखों को सुनता था
लड़की, लड़के की ख़ामोशी को पढ़ती थी
दोनों एकदुसरे को समझते थे
पर कुछ कहते नहीं थे
लड़का बस इन्तेजार में था की
एक दिन जब अँधेरा दूर होगा
एक नयी सुबह आएगी
तब वो कह देगा लड़की को अपने दिल की बात
पर उस बोलती आँखों और लम्बे बालों वाली लड़की की जुल्फें,
पल पल बढ़ रही थी
पल पल स्याह होता जा रहा था आसमान
और एक दिन सुबह के इन्तेजार में
लड़का डूब गया घुप अँधेरे में

अराहान 

तू मेरा रंग देख, मेरा मिजाज देख

तू मेरा रंग देख, मेरा मिजाज देख
मैं तुझसे इश्क करता हूँ
तू मेरा अंदाज देख
क़दमों में बिछा दिए हैं तेरे,
सारे जहाँ की खुशियाँ
शक है तो तू अपना कल देखा अपना आज देख
मैं खामोश हूँ
इसका ये मतलब नहीं की मैं बोलता नहीं
तेरे होठों पर बिखरे हैं मेरे अल्फाज देख
मत सोच की क्या होगा अंजाम मेरी मोहब्बत का
तू बस मेरे इश्क का आगाज  देख

अराहन

कबाडखाना

बहुत कुछ जमा है
मेरे दिल के कबाड़खाने में
शीशें की डिब्बियां में बंद है
मेरे सपनों के टूटे हुए कुछ  पंख
दीवार पर टंगी  हुयी हैं
हसीं यादों की केंचुलिया
रंगीन पन्नों पर कहीं बिखरी हुयी है तुम्हारी मोम  सी बातें
खिडकियों में लटका हुआ है तुम्हारी यादों का मकडजाल
पुराने पलों की मकड़ियाँ अब भी पनाह लेती हैं इनमे
जमीन पर बिखरी पडी है तुम्हारे हाथों की टूटी चूड़ियाँ
उनको अब भी आता है हुनर चुभने का
अब भी जिन्दा ज़िंदा सा है तुम्हारा नाम
उस पुराणी डायरी में
अब भी ताजे ताजे से है तुम्हारे होठों के निशाँ
उन पुराने प्यालों में
जिनमे अक्सर हम दोनों चाय पिया करते थे
अपने आने वाले कल के बारे में बात करते हुए
किसी कोने में अब भी रो रहा है
हम दोनों का "आनेवाला कल"
जिसके रोने की आवाज दबी रह जाती है
मेरे आज के क्रूर ठहाकों के बीच
मेरे दिल में कभी तैर करती थी मीठे झील की मछलियाँ
पर अब खारे पानी का शार्क रस्क किया करता है इसमें

अराहान



 

तेरी यादें



पीले पत्तों जैसी किसी उदास शाम को 
धुंध बन कर छा  जाती हैं आसमान में  तुम्हारी यादें 
साँसों में घुसपैठ करने लगता है 
तुम्हारी यादों का कड़वा धुंआ 
मैं पत्थर फेंककर आसमान में 
तितर-बितर करने की कोशिश करता हूँ 
बादलों में बने तुम्हारे अश्क को 
पर आसमान से दुबारा गिरता हुआ पत्थर 
मुझको ही चोट दे जाता है 
शायद उसको भी पसंद नहीं की 
मैं तुम्हे भूल जाऊं 

अरहान 

स्मृतिअवशेष


समय के गर्भ में
गहराई तक धंसे हुए हैं
कुछ सुनहरे स्मृतियों के जर्जर अवशेष
जितना अन्दर जाता है वर्तमान का फावड़ा
यादों का  एक हसीं टुकड़ा निकल आता है
जिसे मैं आंसुओं से धोकर
पोंछ देता हूँ मुस्कराहट के रुमाल से
और जेब में रख लेता हूँ वो टुकडा
आगे कई वर्षों तक रोने के लिए
मुस्कुराने के लिए

अराहान 

तुम

मेरे शब्दों के मतलब में तुम हो
मेरे होने और ना होने के मतलब में तुम हो
तुम हो मेरे हर हाँ में
तुम हो मेरे हर ना में
तुम हो मेरे आज में
तुम हो मेरे कल में
तुम हो तो मैं हूँ यहाँ वहां या कहीं और
तुम हो तो मेरा है ठिकाना मेरा है ठौर
तुम हो तो गुनगुनाता हूँ
तुम्हारी बाते खुद को सुनाता हूँ
तुम हो तो मैं जिन्दा हूँ  मैं मरने के भी ख्यालों में
तुम हो तो शरबत शरबत है जिंदगी के प्यालों में
तुम हो तो ताजा ताजा से है ख्वाहिशें मेरी
तुम हो तो पुरी पुरी से है फरमाईशें  मेरी
तुम हो तो बहार है खिजा के मौसम में
तुम हो तो ठंडी ठंडी फुहार है दहकते आलम में
तुम हो तो बेचैनी को मिलती है राहत मेरी
तुम हो तो मचलती है चाहत मेरी
मैं क्या बताऊँ की मैं क्या महसूस करता हूँ तुम्हारे होने से
मैं क्या बताऊँ की मैं कितना डरता हूँ तुमको खोने से

अराहान  

धुप

धुप, धुप है
तितली नहीं
जो तुम उसे पकड़कर कैद कर लोगे अपने मुट्ठी
या फिर तोड़कर उनके पंखों को याद करोगे अपने बचपन को

धुप, धुप है
तुम्हारी प्रेमिका का पल्लू नहीं
जिसको ओढ़कर तुम डूबोगे रूमानी ख्यालों में
या फिर अपनी प्रेमिका को सुनाओगे कोई प्रेमकविता

धुप सिर्फ धुप है
ये सिर्फ जलना जानती है
चाहे धुप जाड़े की हो
या गर्मी की


हारे हुए शब्द

कवितायेँ लिखी जा सकती हैं
रात के अँधेरे में
दिन के उजाले में
शाम के धुंधलके में
कविता में शरण लेते हैं कुछ हारे हुए शब्द
उन्हें फर्क नहीं पड़ता
अँधेरे से
या
उजाले से

अरहान

दिवास्वप्न



आओ चले हम
नींद के गलीचे पर बैठकर
कहीं दूर ख्वाबों की दुनियां में
तोड़ ले पेड़ों से इन्द्रधनुष
रंग लेअपना जीवन
चुरा लें आसमान से एक टिमटिमाता सितारा
और रख लें अपने घरौंदे में, रौशन कर लेंअपना संसार
पीकर चुल्लू भर पानी प्रेम सरोवर से
मिटा लें जीवन भर की प्यास
रख दे एकदूजे के होठों पर वो सारी  बातें
जिन्हें हम हकीकत में नहीं कह पाते

अरहान 

तू समझ या ना समझ

तू समझ या ना समझ
अब सबकुछ मैं तेरी समझदारी पर छोड़ता हूँ
दुश्मनों की तादाद बढ़ रही है मेरी दुनियां में
अब सबकुछ मैं अपना तेरी यारी पर छोड़ता हूँ
चोट खाया है हमने मजबूत बनने की हर कोशिश पर
अब सबकुछ मैं अपना, अपनी लाचारी पर छोड़ता हूँ
मर्ज बढ़ता ही जा रहा है, तीमारदारों की तीमारदारी से
अब सबकुछ मैं अपना, अपनी बीमारी पर छोड़ता हूँ
लोग कहते हैं मैं बेकार होने लगा दिन-ब-दिन
अब सबकुछ मैं अपना, अपनी बेकारी पर छोड़ता हूँ
याद रखना तुम की, तुमको ही मुझे फिर से बनाना है
अब सबकुछ मैं अपना तेरी जिम्मेदारी पर छोड़ता हूँ
आंसूं छिपाने हैं मुझे बारिश में भींगकर
अब सबकुछ मैं अपना मौसम की खुशगवारी पर छोड़ता हूँ
मैं अपना सबकुछ सौंपकर तुम्हे जा रहा हूँ
देख मैं अपना अक्स तेरी चाहरदीवारी पर छोड़ता हूँ

अराहान  

यादें

जिन्दा हैं जेहन में अबतक वो  यादें
अबतक वो कहानियां
पहलु में जिनके बीता अपना बचपन, अपनी जवानियाँ
वो झांकती आँखों वाली खुली खिड़कियाँ
चाट पर टहलती मोहल्ले की लड़कियां
वो भेजना हमारा ख़त उनको
और मिटा देना सारी  निशानियाँ
जिन्दा है जेहन में अबतक वो यादें,
अब तक वो कहानियां
वो दांतों तले  ऊँगली दबाकर उसका मुस्कुराना
कागज़ के टुकड़े फेंककर प्यार जताना
वो उसके बाहीं में बीते पालो का जमाना
जैसे काँटों और फूलों का मिल जाना
याद आता है वो मंजर
याद आती हैं वो दिवानियाँ
जिन्दान है अब तक जेहन में वो यादें
अबतक वो कहानियां

अरहान


डर

डर 

बचपन से सिखाया गया था उसे 
किसी से नहीं डरना है 
किसी से भी नहीं डरना है 
किस हालत में नहीं डरना है 
किसी हथियार से नहीं डरना है 
वो निर्भीक बना 
किसी से ना डरा 
आगे बढ़ता रहा 
फिर एक दिन उसे प्रेम हुआ 
और उस दिन के बाद से वो डरने लगा 
दुनिया की तमाम बड़ी छोटी चीजों से 
दुनिया के तमाम उन लोगो से 
जिन्होंने कभी प्यार नहीं किया 

अराहान 

एक शाम




एक शाम 
जब दिन ले रही थी उबासी 
और रात कर रही थी जागने की तैयारी 
परिंदे लौट रहे थे घर को 
चुने हुए दानों के साथ 
पनिहारिनों की टोली लौट रही थी हाथों में मटके लिए 
पूर्व हवा के झोकों के बीच सूरज ले रहा था झपकी 
वो शाम लौट आने की शाम थी 
सब कोई लौट रहे थे वापस अपने घर को 
पर मुझे जाना था
तुमसे दूर 
तुम्हे अकेला छोड़कर, अपनी कविताओं के हवाले 
अपनी कसमों के बीच, हिफाजत से छोड़कर 
लौट आने के दिनों का वास्ता देकर 
मुझे जाना था 
एक ऐसे ही किसी शाम को 
तुमसे दूर 
दाने की तलाश में 

अरहान