मैंने कवितायें नहीं चुराई है
मैंने तो किसी का दर्द चुराया है
एक बेसुरे दर्द को
छंदों में सजाया है
मैंने कवितायें नहीं चुराई है
मैंने तो किसी का दर्द चुराया है
बूँद बूँद गिरते आंसुओं को
कागज़ पे उगाया है
उभर आती है जो माथे पर परेशानियों की शिकन
मैंने इसे शब्दों के जंगल में छिपाया है
गुमनामी की दलदल में दबी थी कुछ आवाजें
मैंने इन आवाजों को एक गीत में गुनगुनाया है
मैंने कवितायें नहीं चुरायी
मैंने तो किसी का दर्द चुराया है
दुनिया भर की मुश्किलों को
अपने सीने से लगाया है
मैंने कवितायेँ नहीं चुराईं मैंने तो
किसी का दर्द चुराया है
ब्रजेश सिंह
ब्रजेश सिंह
ब्रजेश सिंह 'अराहान'