शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

रुकी हुयी एक शाम

तुम्हे पता है 
जब एक ढलती शाम 
मैंने पूछा था तुमसे 
की क्या होता है मतलब प्रेम का 
तुम्हारे चेहरे पर मासूमियत 
इठलाती हुयी बोली थी 
"प्यार का मतलब तुम,
और तुम का मतलब प्यार" 
तुम्हे पता है वो शाम अब तक नहीं ढली।  
वो शाम अब भी रुकी है वहीँ कहीं, 
नदी के किनारे, 
शहतूत के पेड़ों के पास, 
आसमान को धोखा देते हुए।   
बस हम तुम आगे बढ़ गए हैं 
अपने अपने वक़्त से बहुत  आगे 
अब बदल चूका है मतलब "तुम" का 
और प्यार का 


अराहान 

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

लुक्का छिप्पी



रात के झीनी चादर तले , एकांत के पर्दों  के बीच, मैं जब तुम्हारे बारे में सोचता हूँ तो आस पास चमकने लगते हैं,  तुम्हारे साथ बीताये गए सुनहरे पलों के जुगनू। मैं हाथ बढ़ा कर उन्हें पकड़ने की कोशिश करता हूँ  पर हर बार की तरह मेरी मुट्ठी में जलता हुआ खालीपन ही हाथ आता है जिसकी तपिश  से मैं हर बार जल जाता हूँ. तुमसे बिछड़ने के वक़्त, जब मैं अपनी हथेलियों में तुम्हारे आँखों से झर रहे मोतियों को इक्कट्ठा कर रहा था, तब तुमने कहा था की मुझसे दूर हो जाने के बाद तुम चाँद से एक धागा लटकाओगी और मुझे खिंच लोगी। मैं रोज चाँद की तरफ एक छोटे बच्चे की तरह देखता हूँ की कोई धागा गिरेगा चाँद से।  पर अब तक चाँद से कोई धागा नहीं लटका पर हाँ चाँद से हर रोज खून टपकता है, तुम्हारे कसमों का खून, तुम्हारे किये गए वादों का खून।  तुम तो कहा करती थी की जब भी मैं तुम्हे याद करूँगा तुम सब कुछ भूल कर जहाँ भी होगी दौड़ी चली आओगी। मैं हर पल हर वक़्त तुम्हे याद करता हूँ पर तुम नहीं आती।  मुझे पता है की तुम दुनिया के किस ना किसी कोने से मुझे जरूर देखा करती होगी, मेरी खामोशियाँ सुना करती होगी। अगर ऐसा है तो तुम क्यूँ मेरे सामने नहीं आती, क्या तूम सचमुच की परी बन गयी  हो, अगर ऐसा तो फिर आ जाओ ना, परियों के पास तो जादुई छड़ी होती है. अबकी बार मैं वादा करता हूँ, कभी तुम्हारे साथ लुक्का छिप्पी का खेल नहीं खेलूँगा, और फिर कभी तुम्हे खुद से बिछड़ने नहीं दूंगा।

रविवार, 25 अगस्त 2013

क्या जरुरी है

क्या जरूरी है की 
इश्क करें 
और बेक़रार हो जाएँ 
चोरी करें 
और फरार हो जाएँ 
जुर्म करें 
और गिरफ्तार हो जाएँ 
भलाई करें 
और कुसूरवार हो जाएँ 
इन्तजार करें 
और चौकीदार हो जाएँ 
कहानी लिखें 
और कहानीकार हो जाएँ 
दिन काटे सोकर 
और बेकार हो जाएँ 
देते रहें मशवरे 
और सलाहकार हो जाएँ 
बिक जाएँ सियासत में 
और पत्रकार हो जाएँ 
बन जाएँ सनसनीखेज खबर 
और अखबार हो जाएँ 
क्या जरुरी है की
हम लड़ें अपने हक के लिए 
और गुनाहगार हो जाएँ 
इन से तो भला है की चुप रहें आँख मूंदकर 
और भारत की सरकार हो जाएँ 

अराहन 

दूरी

तुमसे कहीं बहुत दूर 
किसी गुमनाम बस्ती में 
बुन रहा हूँ पलकों से 
तुमसे मिलने के सपने 
भेज रहा हूँ आसमान में 
प्रेमपत्रों को बना के पतंग 
इस उम्मीद में की 
जब कटेगी पतंग 
तो गिरेगी तुम्हारे छत पर 
और तुम्हे दिख जायेगा मेरा चेहरा सन्देश में 
मालूम हो जायेगा की मैं तुम्हे याद करता हूँ परदेस में
यकीं हो जायेगा तुम्हे की दूर हो जाने के बाद भी
प्रेम की लौ निरंतर जलती रहती है ह्रदय में
तमाम तुफानो बवंडरो को धता बताते हुए

अराहान

प्रेम करो

फोटो: devianart.com 
प्रेम करो
पर रखो ताकत
दीवारों में चुनवा दिए जाने की
साँसों में भरो इतनी ताकत
की जिन्दा रख सको अपना प्रेम
दीवारों में क़ैद होकर भी

 प्रेम करो
और चौकस रहो
घात लगाये बैठे  शिकारियों से
करो ना कोई चुक
दो ना किसी को मौका शिकार करने का

प्रेम करो
पर रक्खो अपना सीना मजबूत
ना जाने कितने  कारतूसों पर लिखा होगा
तुम्हारा नाम
कितनी तलवारे प्यासी होंगी
 तुम्हारे रक्त की

प्रेम करो
पर थोड़ा डरो
क्यूंकि प्रेम करना गुनाह है
और सडकों पर घूम रहे हैं
इस गुनाह की सजा देने वाले

प्रेम करो
क्यूंकि तुम्हे हो गया है प्रेम
हो गयी है एक हसीं गलती
जो "UNDO" नहीं हो सकती
पर ध्यान रखो
की कोई क़त्ल ना कर दे तुम्हारे प्रेम को

अराहान 

शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

खामोशियाँ


प्रेम किसी भाषा किसी शब्द का मोहताज नहीं होता।खामोशियाँ भी कभी कभी इतना कुछ कह जाती है जो शायद जुबान से बोलकर भी  नहीं कही जा सकती। कुछ ऐसी हीं कहानी उनदोनो की भी थी।उन दोनों को भली भाँती पता था की उनके दिल में क्या है पर एक अनजाने से डर के कारण वे दोनों चुप रहते। ना लड़का कभी कुछ कहता ना लड़की कभी कुछ कहती। बस वे दोनों एक दुसरे को चोरी चोरी देखते और खुश रहते। लड़की को अपनी दुनिया रंगीन लगने लगी. अब वो दिनभर जी तोड़कर काम करने के बावजूद भी थका थका सा महसूस नहीं करती। अपने सौतेली माँ की लाख डांटे  जाने के बाद भी उस के चेहरे पर मुस्कराहट ही दौड़ती। लड़की एक अलग ही दुनिया में जीने लगी थी ।अब वो आईना देख कर मुस्कुराती और सुन्दर दिखने के सारे तरीके आजमाती। उधर लड़का भी खोया खोया सा रहने लगा। स्कूल में पिछली बेंच पर बैठकर वो ख्वाब देखा करता, डेस्क पर लड़की का नाम अपने नाम के साथ लिखता और एक दिल का चित्र बना देता और अपनी कलाकारी पर मन ही मन खुश होता, अपनी इस कलाकारी पर इनाम के बदले वो अध्यापक की छड़ी खाकर भी उफ़ तक नहीं करता मुस्कुराता रहता। अपलक आसमान की तरफ देखना , कवितायेँ लिखना और तस्वीरे बनाना उसकी आदतों में शुमार हो गया था । लड़का लड़की दोनों किसी और हीं दुनिया में  जी रहे थे। उन दोनों को किसी की खबर ना थी. वो दोनों प्रेम नामक एक हसीन बीमारी के गिरफ्त में थे और सदा इसकी गिरफ्त में रहना चाहते थे. इन दोनों का ये अदृश्य प्रेम कई दिनों तक यूँ ही चलता रहा. एक दिन लड़के ने हिम्मत कर के लड़की को एक प्रेमपत्र लिखा  जो उसने ऐसा किसी सिनेमा में नायक को नायिका के लिए लिखते देखा था,  और चुपके से लड़की के आने जाने वाले रास्ते के पास फेंक दिया। लड़की अपने सामने एक कागज़ के टुकड़े को देखकर पहले थोड़ा चौंकी लेकिन बाद में छिपते छिपाते उस पत्र को उठाया और पढ़ा और एक मुस्कराहट के साथ उस कागज़ के टुकड़े को अपने दुपट्टे में छिपाकर चली गयी। लड़का कोने में छिपकर लड़की की सारी हरकतों को देखकर और ये सोचकर मन ही मन बहुत खुश हो रहा था की लड़की ने उसके प्रेम को निवेदन स्वीकार कर लिया है। लड़के ने मन ही मन उस फिल्म के नायक को भी बहुत धन्यवाद दिया जिसकी वजह से उसे यह तरकीब मिली थी.
अगले दिन लड़के को भी एक ख़त मिला जिसमे उस लड़की ने भी ये बात स्वीकारी की वो भी उस लड़के से प्यार करती है।इस तरह उनके जिंदगी में एक नया मोड़ आया और दोनों के बीच खतों का सिलसिला शुरू हो गया ।

फोटो: google.com 

एक दिन लड़के ने लड़की से मिलने की बात कही।जवाब में लड़की ने कहा की मिलने से पहले वो कुछ कहना चाहती है। लड़के ने भी कुछ ऐसी ही बात कही की वो भी मिलने से पहले उस से कुछ कहना चाहता है जो वो अबतक नहीं कह सका।अंत में उन दोनों में ये तय हुआ की वो दोनों अपनी अपनी बात उसी दिन कहेंगे जिस दिन वो मिलेंगे। फिर वो दिन भी आया जिस दिन उन दोनों को मिलना था। जेठ की उस दोपहरी को जब आसपास के सभी लोग अपने अपने घरो में दुबके थे वे दोनों दहकते सूरज को धता बताकर छत पे मिलने  आये।लड़की और दिनों के मुकाबले ज्यादा खुबसूरत लग रही थी और लड़के ने भी उस दिन अपने सबसे अच्छे कपडे पहने थे, जिसमे वो किसी शहजादे की तरह लग रहा था। लड़की लड़के को देखकर शर्मा रही थी और जमीन की ओर देख रही थी और लड़का  भी लड़की से नजरे नहीं मिला पा रहा था। दोनों एकदूसरे के दिल की धडकनों को महसूस कर रहे थे, जिसकी रफ़्तार और दिनों के मुकाबले थोड़ी ज्यादा थी। कुछ देर तक यूँ ही रहे, बिना कुछ बोले। जब यूँ ही कुछ वक़्त गुजर गया तो लड़के ने आगे बढ़कर लड़की को अपने पास बुलाया  और उसकी आँखों में देखने लगा गोया की कुछ पढ़ रहा हो। लड़की भी लड़के की आँखों में  कुछ पढने की कोशिश कर रही थी। ना तो लड़के ने कुछ बोला ना ही लड़की ने।उन दोनों को मिले आधे घंटे बीत चुके थें  लेकिन अबतक उन दोनों के बीच खामोशियाँ नहीं टूटी। दोनों कुछ कहना चाह रहे थे लकिन कुछ बोल ना पाए। लड़की बड़े मासूमियत से लड़के की तरफ देखती की लड़का कुछ बोलेगा और लड़का भी बड़े बेचैनी से लड़की की तरफ देख रहा था की पहले लड़की बोलेगी। पर उन दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला। लड़का सोच रहा था की लड़की शर्मा रही है और लड़की भी कुछ ऐसा हे सोच रही थी।अंत में बहुत देर से बुत बने लड़के ने कुछ हरकत की, उसने एक कागज का टुकड़ा अपनी जेब से निकाला और लड़की के हाथ पर रख दिया और लड़की ने भी कागज़ का एक टुकडा अपने दुप्पट्टे की चुन्नी से निकाला और लड़के के शर्ट की जेब में रख दिया। लड़का लड़की दोनों ने एक नजर से एकदूसरे को देखा और दूसरी नजर से ख़त को और पीछे मुड़कर अपने अपने राह को जाने लगे। लड़का और लड़की दोनों ने दो कदम पीछे मुड़कर ख़त खोला और पढने लगे। और अगले ही पल ना जाने ऐसा क्या हो गया की लड़का लड़की दौड़कर एकदूसरे के करीब आये और एकदूजे से लिपट गए। दोनो के चेहरे पर मुस्कराहट थी और आँखों में थोड़ी नमी।

लड़के और लड़की दोनों ने ख़त में एक ही बात लिखी थी
"मैं बोल नहीं सकता"
"मैं बोल नहीं सकती" 


अराहान