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शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

इंतजार

उसने अपनी डायरी में कई दफा लिखा है की उसे इंतजार करना पसंद नहीं. उसे इतंजार करने से इतनी चिढ है की अगर इंतजार करना किसी व्यक्ति का नाम होता तो वो उसे दस तल्ले से नीचे धकेल देता या फिर उसकी आँखों में मिर्च उड़ेल देता. लेकिन वो उस दिन पहली बार उस कॉफी हाउस की मेज पर बैठा किसी का इन्तजार कर रहा था. और बार बार सड़क की तरफ देख रहा था.

Photo: tumblr.com


सड़क उस दिन भी किसी शायर के दिल की तरह तमाम तरह के ख़्वाबों के शोर से गूँज रहा था. सड़क पर चलती गाड़ियां, अपने मोबाइल स्क्रीन्स पर गुम हो चुके लोग, उसे किसी नाटक के ख़राब किरदारों की तरह लग रहे थे. उन किरदारों की तरह जिन्हे जबरदस्ती नाटक का हिस्सा बनाया गया हो. वो सड़क पर बस इन्तजार करती हुई लडकियां देखना चाहता था. और शहर के इर्द गिर्द इमारतों में शराब या कॉफी पीते लड़के. कॉफी हाउस में बैठी लड़कियां अपने प्रेमियों पर किसी बात पर झगड़ रही थी. वो एक पल के लिए उन लड़कियों को तमाचे मारकर सामने वाली सड़क पर इन्तजार करने के लिए भेजना चाहता था और उनके साथ बैठे लड़को  को शराब पिलाना चाहता था. उसे रह रह कर मन में अजीब से ख्याल आते. उसे दुनिया भर के रेस्त्राओं में बैठे इन्तजार करती लड़कियों के चेहरे नजर आते. सुनसान बस अड्डो पर बस के इन्तजार में बैठी लडकियां नजर आती. वो झुंझलाता हुआ बैरे को एक और कॉफी लाने का आर्डर देता और फिर सामने मेज पर पड़ी टिश्यू पेपर उठाकर उगते सूरज का चित्र बनाने लगता. उस दिन उसने ५ कॉफी आर्डर किये और फिर मेज से वो टिश्यू पेपर उठाकर चुपचाप सड़क पर निकल आया. सड़क अब भी वैसी ही थी. भागते हुए लोगो की भीड़ वाली. वो उस भीड़ से थोड़ा झुंझला कर सड़क किनारे बैठ गया. उसने अपने पर्स से एक लड़की की तस्वीर निकाली. कुछ देर देखने के बाद उसने वो तस्वीर फिर से पर्स में रख दी. इस बीच पानी की कुछ बूँदें उसके आँखों में डेरा जमा चुकी थी. उसने अपने जेब से वो टिश्यू पेपर निकाली पर आँखें नहीं पोछी. उसने उस टिश्यू पेपर सूरज के नीचे एक बेंच जैसी आकृति बनायीं. फिर एक लड़के जैसी आकृति बेंच पे बैठे हुए बनायी और बूत बन बैठा रहा.
उस रोज शहर के अखबार के एक कोने में एक तस्वीर के साथ शोक सन्देश का इस्तेहार छपा था. इत्तेफ़ाकन इश्तेहार में छपी लड़की की तस्वीर उसके पर्स में रखी लड़की की तस्वीर से हु ब हु मिल रही थी. 

शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

उजला सा इक आसमान


सामने सिगरेट की एक डिब्बी पड़ी थी, पर वो उसे छू तक नहीं रहा था, चुप चाप आसमान की तरफ देख रहा था। सिगरेट की डिब्बी के ठीक बगल में कुछ कागजो की एक फाइल थी, जिसे कभी वो देखता और किसी सुखी नदी की तरह उदास हो जाता। कभी वो अपने बीस मंजिला फ्लैट के टेरेस पर बैठ कर घंटो आसमान की तरफ देखता था, सिगरेट पीता था। पर उस दिन वो घंटो आसमान को तकता रहा, मानो जैसे बादलों में किसी खोये खजाने का नक्सा तलाश रहा हो या फिर बादलों में उन खंडहरनुमा महलों को ढूंढ रहा हो, जिसे कभी वो अपना घर कहता था। वो कभी आसमान को तकता, कभी सिगरेट की तरफ देखता, कभी छत की मुंडेर पर रेंग रही किसी चींटी को मसल देता और मुस्कुराने लगता। अगले ही पल वो किसी अमावस की रात की तरह उदास और शांत हो जाता।

नीचे की रंगीन दुनिया में भी चींटियों के माफिक लोग मसल दिए जाते थे, बाकी चींटियों के झुण्ड में थोड़ी हलचल होती पर कुछ पल के बाद सब कुछ शांत हो जाता था। चींटियाँ, चींटियों से खरगोश बन जाती और फिर अपने बिलों में दुबक जातीं। उसे दुनिया खिलौने की तरह लगती, जहाँ खिलौने, खिलौनों से खेलते और कागजो पर गणित के कुछ समीकरण, विज्ञानं के कुछ सिद्धांत लिखकर, अपने आप को इंसान घोषित कर लेते। उसे कागजों से नफरत थी, उसका मानना था कागज़ पर सिर्फ कवितायें ही लिखी जानी चाहिए और बेवकूफ लोग कागज पर चोरी, डकैती, लूट, बलात्कार, आत्महत्या की खबरे छाप देते हैं। कागज़ पर किसी का मेडिकल रिपोर्ट छाप देते हैं जिन्हे पढ़ने के बाद कविता लिखने वाले कविता लिखना छोड़ देते हैं। उसे ऐसे इंसानों से भी नफरत थी, जो इंसान होने का दिखावा करने के लिए रंगीन मुस्कुराते मुखौटे खरीदते थे, जिन से उनका सपाट, भावना विहीन चेहरा छिप सके। वो सड़क पर किसी दम तोड़ते इंसान को देखे तो, जेब से कोई काला नक़ाब निकाल, चेहरे पर चढ़ा कर दूर निकल ले। उसे इंसान होने से भी नफरत थी इसलिए वो इंसान नही बना रहना चाहता था।
वो उस दिन घंटो बैठ आसमान को ताकता रहा, बीच बीच में हर एक घंटे पर हू ब हू उसके जैसे दिखने वाला एक लड़का, ठीक उसके जैसे कपडे पहने हुए, उस से कुछ दूरी पर, उसी मुंडेर पर बैठा, एक सिगरेट सुलगाता, आसमान की तरफ तलाश भरी निगाहो से देखता और जोर से रोता फिर एक फाइल से कुछ कागज़ निकाल कर फाड़ता, और कागज़ के टुकड़े हवा में उड़ाकर, मुंडेर से छलांग लगा देता। जब भी उसके जैसे दिखने वाला लड़का छत से छलांग लगाता, वो एक चींटी को मसल कर बहुत देर तक हँसता।

शनिवार, 20 दिसंबर 2014

नौकरी

नवम्बर की उस आवारा शाम को लड़का रोज की तरह पार्क की बेंच पर बैठा था,उस लड़की की इंतजार में, जिस से वो प्यार करता था।दिन भर इधर उधर दफ्तर दर दफ्तर डिग्रीयों की फ़ाइल लेकर मारा मारा फिरने के बाउजूद भी उसे नौकरी नहीं मिली थी। वो रोज शाम की तरह इस शाम को भी पार्क की उस बेंच पर वो उस लड़की का इन्तजार कर रहा था जिसके गोद में सर रखकर वो रोज की कहानी बताता था और अपने आँखों क3 आंसू बहने से पहले ही उसके दुपट्टे में पोंछ लेता था। उस दिन काफी देर हो गयी थी लड़की के आने में। लड़का बेचैनी में पार्क के उस बेंच पर अपना और उस लड़की का नाम उकेर रहा था। तभी दूर से उसे कोई आता हुआ दिखाई दिया, शाम के धुंध में उसे कुछ भी साफ़ नहीं दिखा रहा था। जब वो धुंधली तस्वीर उसके करीब आई तो उसे एक छोटे से बच्चे का चेहरा नजर आया। बच्चा जब सामने आया तब उसने हाथ से एक पैकेट निकाल कर उस लड़के को दिया और तुरंत ही शाम की धुंध में गायब हो गया। लड़के एक पल के लिए चौंक गया फिर उसने अनमने ढंग से उस पैकेट को खोला। पैकेट में कुछ कागज़ लिफाफे थे। जब उसने पहला लिफाफा खोला तो उसमे किसी कंपनी का को दस्तावेज नजर आये। पूरा पढ़ने पर उसे पता चला की वो तो उसी कंपनी का कॉल लेटर था जिस कंपनी में नौकरी के लिए वो आज सुबह सुबह गया था। लड़का बहुत खुश हुआ, उसकी सारी चिंताए दूर हो गयी थी। वो मन ही मन खुश हो रहा था की नौकरी मिलने की खबर सबसे पहले वो उस लड़की को देगा। लड़का इतना खुश था की ख़ुशी में उसने दुसरा लिफाफा नहीं खोला। कुछ देर बाद जब उसके आँखों से सुनहरे भविष्य की धुप हटी तब उसने दूसरा लिफाफा खोला। ये कोई शादी का कार्ड था। पूरी तरह से कार्ड पढ़ने पर वो स्तब्ध रह गया। उसकी आँखों से आंसू धीरे धीरे रास्ता ढूंढते ढूंढते निकलने लगे। लड़के को उस समय लड़की के दुपट्टे की बहुत ज्यादा जरुरत महसूस हुई। पर उस समय लड़की उसके पास न आ पायी। शाम के उस धुंध में लड़के को एक और अक्स नजर आया। मानो वो अक्स दूर से उस लड़के को देख रहा हो पर पास नाही आ रहा। लड़का पार्क की बेंच से उठकर उस अक्स के करीब जाने लगा पर वो जितना उस परछाई के पीछे जाता परछाई उतने ही दूर जाती रही। और एक समय के बाद परछाई नवंबर की उस धुंधली शाम में न जाने कहाँ खो गयी।

अगले महीने की पहली तारीख लड़के की जिंदगी की एक महत्वपूर्ण तारीख थी। वो दिन लड़के की नौकरी का पहला दिन था और उसी दिन लड़की की शादी उसके कंपनी के मालिक, उसके बॉस से हो रही थी।

घर वापसी

वो गली जिसे भुतहा समझकर लोगो ने अनदेखा कर दिया है कभी उस गली में जाना, वहाँ 11वी क्लास एक लड़का जस का तस बैठा मिलेगा क्लास की पिछली बेंच पर एक लड़की को टुकुर टुकुर ताकते हुए, मुट्ठियों में कागज़ के टुकड़े को भींचे हुए। उस लड़की की शकल तुमसे कितनी मिलती है ये सोच कर तुम चौंकना मत।

वो शहर के आखिरी छोर पे जो एक खंडहर है न कभी तुम उसमे जाना, वहाँ तुम्हे वही लड़का मिलेगा सड़क पर अपनी सायकिल की चेन लगाते हुए, सड़क के उस छोर पर अपने पापा के स्कूटर पर बैठी वो लड़की भी तुमको मिलेगी, उसे कहना लड़का शराब पीने से कभी नहीं मरेगा।

वो जो मेरे घर के पीछे वो रेलवे का यार्ड है न तुम उसमे जाना, वहाँ तुम्हे वही लड़का दिखेगा उसी लड़की के साथ, एक पूल के पर,तुम उनदोनो को बस इतना कहना की पूल से कूद जाना ही उन दोनों के लिए बेहतर है। पूल के दोनों तरफ इंसानों की बस्ती है, मुखौटे वालो इंसानो की बस्ती।

वो जो तुम्हारे घर के पिछवाड़े जो सुखा कुवां है न तुम उसमे झाँक के देखना वहाँ वो लड़का खड़ा है किसी स्टेशन पर, दुनिया से बहुत दूर जाने के लिए, किसी ट्रेन का इन्तजार कर रहा होगा, तुम उस लड़के को बस इतना कहना की वो लड़की उसका इंतजार कर रही है उसी पूल पर जहाँ उस से वो आखिरी बार मिली थी। सुनो तुम एक काम करना दोनों को पूल से धक्का दे देना। और लौट आना हमेशा के लिए मेरे पास उसी पूल के पास सालो पहले जहाँ से हमदोनो कूदे थे।

मंगलवार, 18 मार्च 2014

स्टेचू (Statue)

स्टेचू (Statue) 

उसे स्टेचू कह कर मुझसे जीतना अच्छा लगता था। मैं जब उसे डांटता, तो वो मुझे हंस के स्टेचू कहती, और में स्टेचू हो जाता। मैं batting करता वो बोलिंग करती, वो स्टेचू कहती मैं बोल्ड हो जाता। उसे मुझे सताना अच्छा लगता था और मुझे उसका सताना।
अब वो मेरे पास नहीं है, और मैं अब सचमुच का स्टेचू बन चूका हूँ।
मेरी निगाहें हमेशा दरवाजे पर टिकी रहती है , पता नहीं कब वो दरवाजा खोलकर अन्दर आ जाये और अपनी खनकती आवाज में कह दे 

"Okay, Satue Over. 

पिंटूआ - 1

लड़की ज़ात कोमल होती है, ह्रदय से निर्मल होती है, दयालु होती है, मृदभाषी होती है, विनम्रता की मूर्ति होती है। चाहे लड़की छपरा जिला की हो या दिल्ली की, लड़की लड़की होती है। लड़की जहाँ की हो जुबान खोलेगी तो शहद ही टपकेगा।

आज से पहले तक पिंटूआ भी यही सोचता था।

पिंटूआ का भी दिल साफ़ है पर पिंटूआ के अन्दर शाहरुख़ खान और देवानंद का आत्मा ऐसा फिट है की बेचारा गड़बड़ा जाता है। 
आज वो े शाहरुख़ खान की तरह बालो पे हाथ फेरते और देवानंद की तरह हिल के, और इमरान हासमी की तरह मुस्कुराके एक क्रिस्टन स्टीवर्ट टाइप, शॉर्ट्स एवं टॉप धारिणी कन्या से टाइम पूछ बैठा।

साले, मैंने घडी की दूकान खोल रक्खी है। इस सैंडल से दो पड़ेंगे ना तो सही टाइम का तो पता नहीं तेरे बारह जरुर बजा दूंगी। चीप!!

अरे अरे भड़कती काहे हैं जी, खाली टाइमवे तो पूछे हैं।

आज पिंटूआ का लडकियों के प्रति जो उदार धारणाएं थी वो खंडित हो चुकी थी। वो अपमानित हो गया था पर अपने इस अपमान से ज्यादा वो इस बात पर परेशां हो रहा था की साला एक लड़की किसी को साला कैसे बना सकती है।


Love Ka The End

30 बार कुछ कुछ होता है, 29 बार दिल तो पागल है और 20 बार दिलवाले दुलहनिया ले जायेंगे देखने के बाद लड़के को लगा की, उसके अन्दर भी एक शाहरुख़ खान मौजूद है.  जिसके लिए भी कहीं किसी कोने में कोई सिमरन कोई अंजलि बेसब्री से उसका इन्तजार कर रही है।

लड़का घर के पिछवाड़े में रहने वाली लड़की के आगे पीछे करने लगा था । उसे यकीं था की एक दिन इस आगे पीछे करने का रिजल्ट बहुत जल्दी मिलेगा। इसी बीच लड़के ने जिद्दी आशिक नामक फिल्म देखकर ये ठाना की आज कुछ भी हो जाये लड़की को अपने प्यार का लोहा मनवा के रहेगा। लड़की को ये यकीन दिलवा के रहेगा की जिंदगी नामक इस पिक्चर में उसका हीरो वही है। लड़के के अन्दर आये इस आशिकी से लड़की भी अछूती नहीं थी। वो भी शोले की जया भादुरी की तरह बालकनी के बत्तियां बुझाने के बहाने लड़के को देख लेती पर कुछ कह नहीं पाती। पर लड़का दिन रात लड़की के ही इर्द गिर्द मंडराता। और लड़की को पूरी तरह से अपने प्यार का इजहार करने के लिए बहाने ढूंढता। जाड़े की एक रात लड़के ने फैसला लिया की वो तब तक लड़की के घर के पास खड़ा रहेगा जब तक लड़की खुद आकर उस से आई लभ यु नहीं नहीं कहेगी। जब एक किसान पूस की रात में जागकर अपने खेत की रखवाली कर सकता है और प्रेमचन्द को पूस की रात जैसी कालजयी कहानी लिखने के लिए प्रेरित कर सकता है तो वो फिर क्यों नहीं अपनी माशूका के लिये रात भर उसका इंतजार कर सकता है। लड़के ने बस एक स्वेटर और लड़की के घर से आती रौशनी के सहारे पूरी रात गुजार दी पर लड़की नहीं आई। सुबह के 8 बजे लड़की बाहर आई और लड़के को देख के मुस्कुरायी। लड़के ने राँझना फिल्म के धनुष की तरह इशारे में बताने की कोशिश की, की वो रात भर उसके लिए घर के बाहर इन्तजार करता रहा। पर लड़की शायद समझ नहीं पायी। फिर भी उसने एक कागज़ का टूकड़ा लड़के की तरफ उछाल दिया। लड़का इस कागज़ के टुकड़े को अपने तपस्या का फल समझकर खूशी से पागल हो गया पर उसकी ख़ुशी सिर्फ उतने देर तक रही जबतक उसने कागज़ के टुकड़े में लिखे सन्देश को नहीं पढ़ा था। मैसेज पढ़ते ही उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
उसकी हालत फिल्म के साइड हीरो सी हो गयी थी जो हीरोइन से चाहे कितना भी प्यार कर ले हेरोइन हमेशा मेन हीरो से ही पटती है वो भी साइड हीरो की मदद से। लड़के के साथ भी ऐसा हुआ। यहाँ वो अपनी ही बनाइ पिक्चर में साइड हीरो बन गया और उसका भाई जिसका अभी तक पिक्चर में कोई सीन ही नहीं था एकाएक मुख्य भूमिका में नजर आया। लड़की को लड़के के भाई से प्यार था। उसने लड़के से उस कागज़ के टुकड़े में इतना कहा था की वो उसके भाई से प्यार करती है और वो चाहती है की लड़का इस बात को अपने भाई को बताये।

लड़का जो अबतक अपने आप को शाहरुख़ खान समझता था एकाएक उसको अपना वजूद तुषार कपूर आफ़ताब शिवदसानी अर्शद वारसी और उदय चोपड़ा जैसा लगने लगा। लड़का रोना चाहता था पर रो ना सका। लड़के की छोटी सी लव स्टोरी का दुखद अंत हो गया था। लड़के ने सोचा था की इस लव स्टोरी में जो भी विलन बनेंगे वो उन सब को हराकर लड़की को अपना बनाएगा, अगर वो किसी अंजलि के लिए राहुल बन सकता है तो वो G.One जैसा सुपर हीरो भी बन सकता है। पर यहाँ तो कहानी ही उलटी हो गयी। लड़के हारे कदमो से घर की तरफ बढ़ रहा था। उसकी लव स्टोरी की फिल्म का आखिरी शॉट पूरा हो चुका था और उसके डायरेक्टरनुमा दिल ने भी कह दिया था Packup...........

लड़के ने इस घटना के बाद से अपने रूम में शहरुख खान के जितने भी पोस्टर थे फाड़ डाले। उसके लैपटॉप में शाहरुख़ खान के जितने भी फिल्म थे डिलीट कर डाले।

लड़का आजकल इमरान हासमी की फिलमे देखता है।

शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

आशावाद निराशावाद और मुन्ना भाई एम.बी. बी.एस



विपत्ति जब आती है तब पूरे तामझाम के साथ और पूरे planning के साथ आती है. आज सुबह से ही आपका  दिन ठीक नहीं था. सुबह सुबह आपकी काम वाली ने आपको धमकी दी की अगर कल से आप अपने कमरे में रोज की तरह कचड़ा फैलायेंगे तो वो काम छोड़ देगी। आपके गाँव से फोन आता है की अगर आप इस साल भी पास नहीं हुए तो वापस गाँव लौट आयें, खेतों में काम करनेवालों की सख्त जरुरत है। आप अपने बाबूजी से बात कर के फोन रखे ही थे की आपकी प्रेमिका का मैसेज आता है "call me it's urgent ". आप झट से अपनी माशुका को फोन लगते हैं।  आज आपकी ये पूरानी माशूका भी आपके निठल्लेपन से परेशां हो कर आपसे प्ल्ल्ला  झाड  लेती है। "रमेश, मेरी शादी तय हो गयी है लड़का एक बड़े इंटरनेशनल कम्पनी में काम करता है, दिखने में भी अच्छा है, और……" आपके परेशानी का लेवल पेट्रोल के बढ़ते दाम की तरह बढ़ने लगता है और आप खीज में आकर अपनी एकलौती नोकिया 1100 को तोड़ डालते है भूतकाल में जिस से आपने ना जाने कितने ही रागिनियों, रेखाओं, प्रीतियों और श्रुतियों को पटाया था। आप हताश हो जाते हैं।  अम्बुजा सीमेंट से बना आपके सब्र का बाँध रेत के घरौंदे की तरह ढह जाता है।  आप चुप चाप हाथ पे हाथ धरे अपनी किस्मत को कोस ही रहे होते है की एफ. बी. आई के एजेंट की तरह जोर से दरवाजा खोलते हुए आपका प्रिय मित्र चला आता है।  ये आपका वही  प्रिय  मित्र होता है जिसे आप अपना मेंटर अपना गुरु समझते हैं और जिसके शरण में आकर अपने दारु, बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू इत्यादि आध्यात्मिक औषधियों का सेवन करना शुरू किया था।

"भाई, गजब, हो गया, रिजल्ट निकल गया है और इस बार भी हमलोग फेल हो गए है, लेकिन इस बार तुमको पिछले बार की तुलना में 10  नुम्बर ज्यादा आया है, और ख़ुशी की बात ये है की अब एक साल और हमलोगों को इस कॉलेज में रहना है, इसी ख़ुशी के मौके पर मैं ये दो बोतल बीयर लाया हूँ, चल पीते हैं"

आप अपने परम मित्र के इस आग्रह को टाल  नहीं पाते हैं और हद से ज्यादा व्यथित होते हुए भी सुरापान करने से बाज नहीं आते हैं।  आपके हिसाब से तीन जाम हलक के नीचे उतरने के बाद सब दुःख उतर जाता है।  आप दोनों दोस्त जम के पीते हैं।  और अपनी अपनी प्रेमिकाओं को गालियाँ देते हैं। आपके दोस्त जाने के बाद और पूरी तरह से बीयर चढ़ जाने के बाद, और सुबह से लेकर अभी तक की घटनाओं का विश्लेषण करने के बाद आप इस नतीजे पे पहुँचते हैं की आपका जीना बेकार है, ये दुनिया बहुत बेदर्द है और इस दुनिया में जीना उतना आसान नहीं जितना आमतौर पर टीवी और फिल्मों में दिखाई देता है। असल जिंदगी में कोई Fair & Handsome लगाने से हीरो नहीं बन सकता या फिर मूह में रजनी गन्ध रख के कोई दुनिया नहीं जीत सकता, या फिर Axe का  deodorant  लगा के कोई  लडकिया को पीछे नहीं भगा सकता।  दुनिया बहुत मुश्किल है, एक जंग है, एक रेस है और इस दुनिया में हम जैसे लोगो के लिए कोई जगह नहीं है।  आप निराशावाद के कुएं बहुत अन्दर तक गिर चुके होते हैं और आपके पास बाहर निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आता है।  आप मन ही मन क्विट करने की ठान  लेते हैं, और सुसाईड करने के कारगर तरीको के बारे में सोचने लगते हैं, एकबारगी आपके मन में ख्याल आता है  की आप अपने प्रिय हीरो सनी देओल के बाबूजी के स्टाइल में मोहल्ले के वाटर टैंकर पर चढ़ कर अपनी प्रेमिका को जमके  गाली दे और उसके बाद उसी से कूद जाएँ पर आपके ऊँचाई  से डरने की वजह से आप  इस तरीके को नकार देते हैं । आप अपने बटुवे को अपने जेब में रखते हुए घर से बाहर निकल जाते  हैं . आप रोज की तरह आज छिप के पीछे वाली गली से नहीं निकले, क्यूंकि आज आपके अन्दर नुक्कड़ के चाय वाले से उधार मांगे जाने का डर नहीं रहता  है , आज आप मुक्त  थे स्वंतत्र  थे, किसी का डर  नहीं था इसलिए आप सीधे रस्ते से घर से निकले। और रोज की तरह सबको कल उधार चूका देने का वादा कर के आप सीधे उस दूकान में पहुंचे जहाँ रस्सी मिलती है।  आप अपने साइज़ की एक रस्सी लेकर दुबारा घर की तरफ लौट  ही रहे होते हैं की आपको रास्ते में मोहल्ले का वो हरामी कुता मिल जाता है जिसके   हरामीपन के किस्से दूर दूर तक फैले होते हैं और जिसके काट लेने से 14 सुइयां भी काम  नहीं आती थी. आपके हाथ में रस्सी, शकल पे बेरुखी और मूह से 5000 Hayward बियर के गंध सूंघते हुये और आपके हुलिए को डीपली एनालाइज करते हुए कुत्ते ने आपको चोर समझा और जोर जोर से भौंकने लगा।  आप कुत्ते के भौंकने से दर के तेज क़दमों से चलने लगे और कुत्ते ने भी situation को समझते हुए अपने पैरो का acceleration  तेज किया।  अब आप आगे थे और कुत्ता पीछे।  आपकी रफ़्तार तेज और  र्कुत्ते की भी रफ़्तार तेज और जिस point पर आपकी रफ़्तार कुत्ते की रफ़्तार से कम हुयी आप कुत्ते द्वारा काटे गए।  और उस हरामी कुत्ते ने भी ऐसी जगह काटा जिसके बारे में आप धड़ल्ले कसी को बता नहीं सकते। काटने के बाद कुत्ते ने अपना mission accomplished  समझा और  चलता बना. आप अपने पिछवाड़े पे जख्म और दिल पे उस से भी ज्यादा गहरा जख्म लेके नजदीकी clinic  की तरफ चल दिए. आपके ख़याल से मरने का ख्याल कुछ देर तक निकल चूका था. आप के पिछवाड़े से बहते हुए खून को देखकर आपको अपने जिंदगी का अहसास हुआ की ये कितनी कीमती है।  आप दौड़ते हुए clinic जाते हैं और वहां injection लेते है।  clinic के डॉक्टर को देख के आपको मुन्नाभाई एम् बी बी एस का संजय दत्त नजर आता है और आईने में अपनी शकल देखकर आपको उसी फिल्म का जिमी शेरगिल नजर आता है।  और धीरे धीरे आपको समझ में आता है की ये जिंदगी कितनी हसीं है और चाहे कुछ भी हो जाये quit करना last option नहीं है. इंसान को हर परिस्थिति से लड़ना और जूझना चाहिए। आप मन ही मन उस कुत्ते को और डॉक्टर को धन्यवाद देते हैं और घर लौट आते हैं. रास्ते में फिर आपका वही दोस्त मिलता है।
"क्या भाई, क्या हाल बना लिया है, फेल हो जाने का इतना दुःख, भाक साले, तुमसे ई उम्मीद नहीं था, अच्छा तुमको पता है वो तीन नंबर रोड वाली तान्या है ना तुझसे प्यार करती है, हम अभी जस्ट पता लगा के आये हैं, और ये देख इसी ख़ुशी में बीयर भी लायें हैं, …………"

समाप्त

शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

खामोशियाँ


प्रेम किसी भाषा किसी शब्द का मोहताज नहीं होता।खामोशियाँ भी कभी कभी इतना कुछ कह जाती है जो शायद जुबान से बोलकर भी  नहीं कही जा सकती। कुछ ऐसी हीं कहानी उनदोनो की भी थी।उन दोनों को भली भाँती पता था की उनके दिल में क्या है पर एक अनजाने से डर के कारण वे दोनों चुप रहते। ना लड़का कभी कुछ कहता ना लड़की कभी कुछ कहती। बस वे दोनों एक दुसरे को चोरी चोरी देखते और खुश रहते। लड़की को अपनी दुनिया रंगीन लगने लगी. अब वो दिनभर जी तोड़कर काम करने के बावजूद भी थका थका सा महसूस नहीं करती। अपने सौतेली माँ की लाख डांटे  जाने के बाद भी उस के चेहरे पर मुस्कराहट ही दौड़ती। लड़की एक अलग ही दुनिया में जीने लगी थी ।अब वो आईना देख कर मुस्कुराती और सुन्दर दिखने के सारे तरीके आजमाती। उधर लड़का भी खोया खोया सा रहने लगा। स्कूल में पिछली बेंच पर बैठकर वो ख्वाब देखा करता, डेस्क पर लड़की का नाम अपने नाम के साथ लिखता और एक दिल का चित्र बना देता और अपनी कलाकारी पर मन ही मन खुश होता, अपनी इस कलाकारी पर इनाम के बदले वो अध्यापक की छड़ी खाकर भी उफ़ तक नहीं करता मुस्कुराता रहता। अपलक आसमान की तरफ देखना , कवितायेँ लिखना और तस्वीरे बनाना उसकी आदतों में शुमार हो गया था । लड़का लड़की दोनों किसी और हीं दुनिया में  जी रहे थे। उन दोनों को किसी की खबर ना थी. वो दोनों प्रेम नामक एक हसीन बीमारी के गिरफ्त में थे और सदा इसकी गिरफ्त में रहना चाहते थे. इन दोनों का ये अदृश्य प्रेम कई दिनों तक यूँ ही चलता रहा. एक दिन लड़के ने हिम्मत कर के लड़की को एक प्रेमपत्र लिखा  जो उसने ऐसा किसी सिनेमा में नायक को नायिका के लिए लिखते देखा था,  और चुपके से लड़की के आने जाने वाले रास्ते के पास फेंक दिया। लड़की अपने सामने एक कागज़ के टुकड़े को देखकर पहले थोड़ा चौंकी लेकिन बाद में छिपते छिपाते उस पत्र को उठाया और पढ़ा और एक मुस्कराहट के साथ उस कागज़ के टुकड़े को अपने दुपट्टे में छिपाकर चली गयी। लड़का कोने में छिपकर लड़की की सारी हरकतों को देखकर और ये सोचकर मन ही मन बहुत खुश हो रहा था की लड़की ने उसके प्रेम को निवेदन स्वीकार कर लिया है। लड़के ने मन ही मन उस फिल्म के नायक को भी बहुत धन्यवाद दिया जिसकी वजह से उसे यह तरकीब मिली थी.
अगले दिन लड़के को भी एक ख़त मिला जिसमे उस लड़की ने भी ये बात स्वीकारी की वो भी उस लड़के से प्यार करती है।इस तरह उनके जिंदगी में एक नया मोड़ आया और दोनों के बीच खतों का सिलसिला शुरू हो गया ।

फोटो: google.com 

एक दिन लड़के ने लड़की से मिलने की बात कही।जवाब में लड़की ने कहा की मिलने से पहले वो कुछ कहना चाहती है। लड़के ने भी कुछ ऐसी ही बात कही की वो भी मिलने से पहले उस से कुछ कहना चाहता है जो वो अबतक नहीं कह सका।अंत में उन दोनों में ये तय हुआ की वो दोनों अपनी अपनी बात उसी दिन कहेंगे जिस दिन वो मिलेंगे। फिर वो दिन भी आया जिस दिन उन दोनों को मिलना था। जेठ की उस दोपहरी को जब आसपास के सभी लोग अपने अपने घरो में दुबके थे वे दोनों दहकते सूरज को धता बताकर छत पे मिलने  आये।लड़की और दिनों के मुकाबले ज्यादा खुबसूरत लग रही थी और लड़के ने भी उस दिन अपने सबसे अच्छे कपडे पहने थे, जिसमे वो किसी शहजादे की तरह लग रहा था। लड़की लड़के को देखकर शर्मा रही थी और जमीन की ओर देख रही थी और लड़का  भी लड़की से नजरे नहीं मिला पा रहा था। दोनों एकदूसरे के दिल की धडकनों को महसूस कर रहे थे, जिसकी रफ़्तार और दिनों के मुकाबले थोड़ी ज्यादा थी। कुछ देर तक यूँ ही रहे, बिना कुछ बोले। जब यूँ ही कुछ वक़्त गुजर गया तो लड़के ने आगे बढ़कर लड़की को अपने पास बुलाया  और उसकी आँखों में देखने लगा गोया की कुछ पढ़ रहा हो। लड़की भी लड़के की आँखों में  कुछ पढने की कोशिश कर रही थी। ना तो लड़के ने कुछ बोला ना ही लड़की ने।उन दोनों को मिले आधे घंटे बीत चुके थें  लेकिन अबतक उन दोनों के बीच खामोशियाँ नहीं टूटी। दोनों कुछ कहना चाह रहे थे लकिन कुछ बोल ना पाए। लड़की बड़े मासूमियत से लड़के की तरफ देखती की लड़का कुछ बोलेगा और लड़का भी बड़े बेचैनी से लड़की की तरफ देख रहा था की पहले लड़की बोलेगी। पर उन दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला। लड़का सोच रहा था की लड़की शर्मा रही है और लड़की भी कुछ ऐसा हे सोच रही थी।अंत में बहुत देर से बुत बने लड़के ने कुछ हरकत की, उसने एक कागज का टुकड़ा अपनी जेब से निकाला और लड़की के हाथ पर रख दिया और लड़की ने भी कागज़ का एक टुकडा अपने दुप्पट्टे की चुन्नी से निकाला और लड़के के शर्ट की जेब में रख दिया। लड़का लड़की दोनों ने एक नजर से एकदूसरे को देखा और दूसरी नजर से ख़त को और पीछे मुड़कर अपने अपने राह को जाने लगे। लड़का और लड़की दोनों ने दो कदम पीछे मुड़कर ख़त खोला और पढने लगे। और अगले ही पल ना जाने ऐसा क्या हो गया की लड़का लड़की दौड़कर एकदूसरे के करीब आये और एकदूजे से लिपट गए। दोनो के चेहरे पर मुस्कराहट थी और आँखों में थोड़ी नमी।

लड़के और लड़की दोनों ने ख़त में एक ही बात लिखी थी
"मैं बोल नहीं सकता"
"मैं बोल नहीं सकती" 


अराहान

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

"रोहित अग्रवाल (12C), निहारिका कक्कर (11A) की लेता है "

"रोहित अग्रवाल (12C), निहारिका कक्कर (11A) की लेता है"
स्कूल के टॉयलेट के दीवारों पर परमानेंट मार्कर की सहायता से बेरहमी से उकेरे गए ये शब्द मेरे जीवन के सबसे घिनौने, डरावने और खतरनाक शब्दों में से एक थे. उस दिन मैं क्लास में बहुत शांत रहा. रोज की तरह आज मैंने अकाउंट्स के टीचर की पतली आवाज की नक़ल नहीं उतारी और नाही निहारिका की तरफ मुड़कर देखा, उस दिन मैं घर लौटते वक्त रोज की तरह 'निहारिका गेम पार्लर" में जाकर जी.टी.ए वाईस सिटी भी नहीं खेला, आज से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था की मैं उस दूकान में न गया हो, मुझे गेम से ज्यादा लगाव गेम पार्लर के नाम से था. वो दिन बहुत भारी सा बीता. हर वक्त दिमाग में वही शब्द, किसी कर्कश आवाज की तरह शोर मचा रहे थे. धीरे धीरे ये शब्द दृश्यों में बदलने लगें.
उस दिन हर चैनल पर एक ही बात फ्लैश कर रही थी "रोहित अग्रवाल (12C), निहारिका कक्कर (11A) की लेता है"
मैं चैनल पर चैनल बदलता जा रहा था पर दिमाग पर रोहित अग्रवाल और निहारिका कक्कर ही सवार थे


*(नहीं, निहारिका कक्कर रोहित अग्रवाल पर सवार थी)


उस दिन के बाद से मैंने कभी टी.वी नहीं देखी, शायद इसलिए क्यूंकि मैंने उस दिन घर में मौजूद एकलौती टी.वी को तोड़ दिया था या फिर इसलिए की मुझे हर चैनल पर रोहित अग्रवाल और निहारिका कक्कर ही दिखाई दे रहे थे.
उस दिन मैंने ४ साल के टिंकू को सिर्फ इसलिए एक थप्पड़ मार दिया क्यूंकि वो मुझसे फाईव स्टार खिलाने की जिद कर रहा था. यूँ मुझे बच्चे हद से ज्यादा पसंद है और इसी वजह से आस पड़ोस के बच्चे भी मुझमे जादा रूचि रखते हैं पर उस दिन ना जाने क्यूँ मैंने उस बच्चे को एक थप्पड़ मारा, शायद इसलिए क्यूंकि उसका नाम टिंकू उर्फ तिलक अग्रवाल था.

उस दिन इस घटना के बाद मुझे लगा की मैं एक बुरा इंसान बन चूका हूँ. मेरे जेहन में बुरे इंसान की जो छवि थी उसके अनुसार बुरा आदमी बनने के लिए शराब पीना, लंबी दाढ़ी रखना और गाली देना अनिवार्य था. उस समय मैं सिर्फ 16 का था, और मेरे चेहरे पर दाढ़ी के नाम पर सिर्फ कुछ रेशमी बाल ही उगे थे. उस दिन मैंने पूरी तरह से बुरा आदमी बनने के लिए सबसे पहले पापा की शेविंग किट चुराकर शेविंग की, मैंने कहीं सुन रक्खा था की शेविंग करने से जल्दी दाढ़ी आती है और फिर पापा के ही वैलेट से पैसे चुराए और शराब पी. उस दिन मैंने बेवजह अपने मकान मालिक को "भैन्चो" कहा.

*(बेवजह नहीं
, मुझे बुरा आदमी बनना था और उसके लिए गाली देना जरूरी था) 

उस दिन मैं सड़कों पर बेतहाशा घूमता रहा. उस दिन ऐसा पहली बार हुआ जब मैं रात के सात बजे घर में ना होकर घर से बाहर  8 किलोमीटर दूर श्याम टाकीज के सामने वाली सड़क पर आवारागर्दी कर रहा था. उस दिन मैं अपने आप को किसी आर्ट फिल्म के नायक की तरह समझ रहा था और मुझे एकबारगी ये लगा की मैं आज जो कुछ भी कर रहा हूँ हकीकत में नहीं कर रहा बल्कि किसी फिल्म की शूटिंग कर रहा हूँ. मैं उस समय यह सोच रहा था की एक 11A की लड़की का एक 12C के लड़के से क्या लेना देना हो सकता है. और आज जिसने भी टॉयलेट के दीवार पर निहारिका कक्कर के बारे में जो कुछ लिखा है वो बदले की भावना से लिखा होगा, ये भी सकता है की उस लड़के ने निहारिका कक्कर को प्रोपोज किया हो और उसके ठुकराने पर लड़के ने अपना गुस्सा टॉयलेट के दीवार पर निहारिका के बारे में उलूल जुलूल लिखकर उतारा हो. मैं यह सोचकर थोड़ा आस्वश्त हुआ ही था की मन में एक और ख्याल आया की उस लड़के ने रोहित अग्रवाल का ही नाम क्यूँ लिखा? ये सवाल मेरे जेहन में एक जिद्दी जोंक की तरह चिपक गया. मुझे लगा की आज मुझे किसी आर्ट फिल्म के नायक की बजाये किसी जासूसी फिल्म के नायक की तरह सोचना चाहिए और जल्द से जल्द मुझे इस टॉयलेट वाली घटना के तह तक पहुंचना चाहिए. टॉयलेट वाली घटना के नाम से मुझे याद आया की मुझे जोर की पेशाब लगी है इसलिए श्याम टाकीज के पीछे वाली दीवार के सामने पेशाब करने लगा. उस दीवार पर साफ़ अक्षरों में लिखा था "देखो, गधा मुत रहा है" पर ना जाने मुझे ऐसा क्यूँ लगा की यहाँ भी किसी ने लिख दिया है की "रोहित अग्रवाल (12C), निहारिका कक्कर (11A) की लेता है ". मैं उस समय अपने पेशाब से उस दीवार पर लिखे इस घिनौने वाक्य को मिटाने की कोशिश करने लगा पर मैं सफल न हो सका. उस दिन मैंने गुस्से में आकर श्याम टाकीज के आसपास जितने भी (A) सर्टिफिकेट वाले फिल्मों के पोस्टर थे फाड़ डाले. "अकेली रात" से लेकर "मचलती हसीना" तक जितने भी फिल्म के पोस्टर थे उनमे मुझे दो ही लोग दिखाई दे रहे थे. रोहित अग्रवाल और निहारिका कक्कर. उस समय मुझे लगा की मैं यहाँ दो पल और रुका तो मैं या तो पागल हो जाऊंगा या फिर सिनेमा हॉल के कर्मचारी मेरी पिटाई कर देंगे, इसलिए मैं वहाँ से चला गया. अगले दिन हिंदी की परीक्षा थी इसलिए मैं हिंदी व्याकरण की किताब खरीदने किताबों के बाजार गया और वहाँ एक दूकान से किताब खरीदी.जब मैं दुकानदार को पैसे देकर पीछे मुड़ा ही था की मेरी नजर दूकान के नाम पर पडी मैं किताब को दुकानदार के मूह पर मारकर भागने लगा. मेरी इस हरकत से आश्चर्यचकित और गुस्साए 'रोहित बुक डिपो'  के उस दुकानदार से उस दिन मुझे "भैन्चो" के अलावा और भी गालियों के बारे में जानकारी मिली. 

उस दिन पहली बार घर पर मेरी जमकर पिटाई हुयी और इन सब का जिम्मेदार था "रोहित अग्रवाल 12C". मन ही मन उस समय मैंने रोहित अग्रवाल को बहुत गालियाँ दी और उस से बदला लेने की सोच ली. उस रात मैंने एक अजीब सपना देखा. सपने में मैं परीक्षा हॉल में बैठा था. और मेरे सामने हिंदी का प्रश्न पत्र था, मैं नौवे सवाल का उत्तर लिख रहा था, जिसमे "लेना" शब्द को क्रिया के रूप में वाक्य में प्रयोग करना था. मैंने इस सवाल के उत्तर में ये लिखा "रोहित अग्रवाल (12C), निहारिका कक्कर (11A) की लेता है ". मेरे ऐसा लिखने से मुझे स्कूल से निकाल दिया गया और निहारिका कक्कर को जब ये बात पता चली तो उसने मुझे एक थप्पड़ भी मारा और धमकी दी की रोहित अग्रवाल से कहकर वो मेरी टांगें तुडवा देगी. उसका इतना कहना ही मेरे लिए बिजली के करंट के सामान था, और इस करंट से मेरा सपना टूट गया. अगर निहारिका कक्कर ने सपने में मेरी रोहित अग्रवाल से तंग तुडवाने वाली बात ना कही होती तो शायद मेरा सपना कुछ देर और चलता और मैं अंत में रोहित अग्रवाल को मार डालता.

अगले दिन सुबह स्कूल जाते वक्त मैंने रास्ते में एक दूकान से एक परमानेंट मार्कर और एक नेलपोलिश रिमूवर की शीशी खरीदी और स्कूल की तरफ चल पड़ा. उस समय मैं अपने आप को हिंदी सिनेमा के उस नायक की तरह महसूस कर रहा था जो फिल्म के अंतिम सीन में, फिल्म के विलेन से बदला लेता है. उस दिन मैं जब स्कूल गया तो हर बार की तरह क्लास में ना जाकर मैं सीधे स्कूल के टॉयलेट में गया और जिस जगह पर "रोहित अग्रवाल (12C), निहारिका कक्कर (11A) की लेता है " लिखा था उस को पेर्मानेट मार्कर की मदद से काटा और फिर नेलपॉलिश रीमुवर से मिटा दिया. मैं थोड़ी देर वहीँ खडा रहा और फिर सोचा की मुझे रोहित अग्रवाल के बहन सीमा अग्रवाल के बारे में कुछ उलूल जुलूल लिख देना चाहिए पर फिर दिमाग में ये ख्याल आया की फिल्मो में हीरो किसी की माँ बहन के बारे में कुछ उलटा सीधा नहीं बोलते है या करते है चाहे वो विलेन की माँ बहन ही क्यूँ ना हो. मैं यह सोचकर टॉयलेट से बाहर चला आया. और क्लास की तरफ चलता बना. टॉयलेट और क्लास के बीच के रास्ते को तय करते समय मेरे जेहन में ये ख्याल आ रहे थे की क्या मेरा मकसद पूरा हो गया, क्या मेरा बदला पूरा हो गया? मेरे अंदर का कमजोर इंसान कहता की "हाँ अब बात यहीं खत्म हो जाये तो ठीक है, ऐसे भी मार पीट में क्या रक्खा है, इन छोटी छोटी बातों पर मार पीट हम जैसो लोगो को शोभा नहीं देती" लेकिन मेरे अंदर किसी कोने में बसे सुनील शेट्टी को यह मंजूर नहीं था, उसके हिसाब से अभी असली गुनाहगार का पता लगाना बाकी था, उस को उसके किये की सजा मिलनी बाकी थी.
मेरे मन के अंदर चल रहे इस युद्ध में जीत मेरे अंदर बसे कमजोर इंसान की ही हुयी. ये कहना सही रहेगा की मैंने जबरदस्ती अपने अंदर बसे कमजोर इंसान को जीताया, क्यूंकि मेरे दुबले पतले शरीर का रोहित अग्रवाल के लंबे चौड़े शरीर से कोई मुकाबला नहीं था, और मैं नहीं चाहता था की मुझे निहारिका कक्कर रोहित अग्रवाल से हारता हुआ देखे. इन्ही बातों पर विचार विमर्श करते करते मैं कब क्लास में चला आया पता ना चला. क्लास में घुसते ही मैं अपना सीट ढूँढने लगा, और तब मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा जब मुझे पता चला की मेरे सीट के बगल में निहारिका कक्कर का सीट है. उस दिन निहारिका कक्कर मेकअप करके आये थी इसलिए और दिनों के मुकाबले ज्यादा खूबसूरत लग रही थी.मैं ही मन बहुत खुश हो रहा था और भगवान का शुक्रिया अदा कर रहा था. उस समय मुझे लग रहा था की अब सब कुछ ठीक हो गया और हर हिंदी फिल्म की तरह मेरी कहानी का भी अंत सुखान्त होगा.

उस दिन कहानी में ट्विस्ट तब आया जब मैंने देखा की निहारिका कक्कर प्रश्न सात (अ) के उत्तर में रोहित अग्रवाल का नाम लिख रही है. प्रश्न सात (अ) में आँखों का तारा नामक मुहावरे का वाक्य में प्रयोग करना था और जिसके उत्तर में निहारिका कक्कर ने लिखा रोहित अग्रवाल मेरी आँखों का तारा है”.........
ये पढ़ने के बाद मेरी कलम रुकी की रुकी रह गयी, मैंने निहारिका कक्कर को हिकारत भरी नजरो से देखते हुए दबी आवाज में एक भद्दी गाली दी, वो गाली बहुत ही प्रचलित गाली थी जो प्रायः लड़के उन लड़कियों को देते थे जो उनका दिल तोड़ देती थी या फिर जिनसे उनका सम्बन्ध विच्छेद हो जाता था....
उस दिन मैंने अपना पेपर अधूरा ही छोड़ दिया और समय से पहले क्लास से बाहर आ गया. क्लास से बाहर निकलते समय मैंने दुबारा निहारिका कक्कर को देखा जो मेरे समय से पहले जाने के कारण आश्चर्यचकित  थी. मैं क्लास से निकल कर सीधा टॉयलेट की तरफ गया और पेशाब करने लगा. मैंने किसी फिल्म में परेश रावल को यह कहते सुना था की जब आदमी को गुस्सा आये तो उसे मूत लेना चाहिए, इस से गुस्सा शांत हो जाता है. पेशाब करने के बाद भी मेरा गुस्सा शांत नहीं हुआ और इसलिए मैंने परेश रावल को भी मन ही मन गाली दी.

उस दिन मैं बहुत दुखी और अपमानित सा महसूस कर रहा था, मैंने उस दिन मन ही मन ये भी कसम खाए की मैं अब से अपनी तुलना किसी हीरो के साथ नहीं करूँगा. रह रह मेरे दिमाग में निहारिका कक्कर की बाते गूँज रही थी.

मेरा होमवर्क बना दो ना, प्लीज क्या तुम मेरा अकाउंट्स का असायीन्मेंट बना दोगे” “तुम मेरे सबसे अछे दोस्त हो"

पहले मुझे लगता था की निहारिका कक्कर सिर्फ मुझ पर लाइन मारती है और मुझ पर ही सबसे ज्यादा भरोसा करती है तभी तो वो हर काम में मुझे ढूंढती है और वो तो मुझे ही सबसे अच्छा दोस्त मानती  है. मैंने किसी फिल्म में नायक को यह कहते सुना थे की दोस्ती, प्यार की पहली सीढ़ी होती है. बस मैं यहीं धोखा खा गया.

उस दिन मुझे फिल्मों से भी नफरत हो गयी. और उस दिन मैंने यह कसम खाई की अब कभी भी अपने जीवन फ़िल्मी फोर्मुले नहीं अपनाऊंगा. यही सोचकर मैं टॉयलेट से बाहर निकल आया और घर की तरफ चलने लगा पर फिर पता नहीं मैं क्या सोचकर मैं दुबारा टॉयलेट में गया और जेब से परमानेंट मार्कर निकाल कर दिवार पर बड़े बड़े अक्षरों में लिख दिया हाँ, रोहित अग्रवाल (12C), निहारिका कक्कर (11A) की लेता है"

समाप्त

 इस कहानी के सभी पात्र एवं घटनाएं काल्पनिक है.

(C) ब्रजेश कुमार सिंह 'अराहान'

02.08.2012