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मंगलवार, 25 मार्च 2014

एडवरटाइजिंग चुतियापा

शाहरुख खानवा एगो क्रीम का परचार करता है, परचार में देखाता है की कैसे उ, उ क्रीम लगाके इतना बड़ा सुपरस्टार बन गया .  साला जब तुम स्ट्रगल कर रहे थे तब फेयर हैण्डसम आया ही नहीं था मार्किट में. तब फिर कैसे बन गए तुम सुपरस्टार.  ई तो दिन दहाड़े चुतिया बनाना हुआ.


इसी तरह, इसी क्रीम के एक और परचार में दिखता है की कैसे एक लड़का गोरा होने के लिए कैसे छिप छिप के लडकियों का क्रीम लगाता है,  साले दूकान पर से धड़ल्ले निरोध खरीदते हो, और लडकियों वाली क्रीम नहीं खरीद सकते हो क्या, जो यूँ छिप छिप के लड़कियों की क्रीम चुरा रहे हो.
हद है परचारबाजी का, साला तुम्ही लोग के वजह से बेचारा, मनोजवा, पिंटूआ जैसा थोडा सांवला किस्म का लड़का सब क्रीम खरीद खरीद के अपना पौकेट मनी जियान (खत्म) कर लेता है फिर भी पिन्किया को कोई और पटा  लेता है. यार बंद करो ये काले गोरे का खेल. कला गोरा से कुछ नहीं होता है, अन्दर टीलेंट होना चाहिए.
तुमलोग साले परचार के नाम पर, अपना प्रोडक्ट बेचने के नाम पर भोले भाले लोगो के साथ खिलवाड़ कर रहे हो. तुमलोग दिखाते हो की फलाना ब्रांड का डीयो लगाने से आसमान से धडाधड सुन्दर लडकिया सब गिरने लगती है, साला पिंटूआ बेचारा यही परचार देख के छत पर गया की, जब वो डीयो लगाएगा तो आसमान से परी गिरेगी, बेचारा पांच मिनट तक डीयो लगाके आसमान की तरफ देखता रहा कोई परी नहीं गिरी, उलटे एक हरामी किस्म का कौवा उसके मूह पे हग के चला गया. हद है यार, तुमलोग कब तक बेचारे ऐसे मासूम लोगो के भावनाओं के साथ खेलोगे.
तुमलोग साले दिखाते हो की मूह में रजनीगन्धा रख लेने से कैसे दुनिया कदमो में आ जाती है. पिंटूआ    इ परचार देख के इतना ना रजनीगन्धा खा लिया की बेचारा को ऑपरेशन करना पडा, दुनिया कदमो में तो नहीं आई, उलटे उसके बाप को घर गिरवी रख के ऑपरेशन के लिए कर्जा लेना पडा.
सलमान खानवा हीरो है, बहुत बड़ा फैन फौलोविंग है, अब उ थमसप का परचार में देखा रहा है की कैसे थम से पी के उ तूफानी करता है, ई तूफानी के चक्कर में बेचारा पिंटूआ तीन तल्ला पर से थम्सअप पी के कूद गया और दोनों पैर तुडवा लिया, हालांकि परचार में तुमलोग दिखाते हो की ई स्टंट सब एक्सपर्ट किया है पर साला इतना छोटा अक्षर में दिखाते हो की बहुते लोग पढ़ भी नहीं पाता है और हाथ गोड़ (पैर) तुडवा लेता है. अरे यार तुम हीरो लोगो को भोले भाले लौंडे बहुत फॉलो करते हैं, यार परचार ही करना है तो अच्छे चीज का करो जो लोगो के लिए फायदेमंद हो. रामदेव बाबा भले ही रामलीला मैदान से सलवार पहन के भाग गए थे पर उनका एक बात एकदम सही है की ई कोका कोला, थमसप सब जहर होता है, केमिकल होता है. और तुमलोग हो की जहर का परचार कर रहे हो पैसा के लिए.
मेरी माँ कहती है की शुभ काम करने से पहले हमें मीठा खाना चाहिए 
साला तुमलोग ठहरे मार्केटिंग के आदमी, हजारो तरीका होता है तुमलोग के पास लोगो को चुतिया बनाने का, तुमलोग को पता  चल गया है की हमलोग इमोशनल फूल होते है, परचार में मम्मी पापा को भी खिंच लाते हो, साला हमलोग मूह मीठा करने के लिए लड्डू खाते हैं, रसगुल्ला खाते हैं, रसमाधुरी खाते हैं, पर तुमलोग को करना है कैडबरी डेयरीमिल्क का परचार, तो तुम माँ का सहारा लेकर कहते हो की "मेरी माँ कहती है कुछ भी शुभ करने से पहले मीठा खाना चाहिए". ठीक है हाँ हम मानते हैं की माँ कहती है की शुभ काम करने से पहले मीठा खाना चाहिए पर ई तो नहीं कहती है ना  की चॉकलेट ही खाना चाहिए, और हमलोग की माँ कभी ये नहीं सिखाती की किसी भी अनजान आदमी (खासकर किसी लड़की से चॉकलेट मांग के खाए) मां तो कहती है की कोई कुछ प्यार से दे भी तो पहले तीन बार मना करना चाहिए.
यार बंद करो ये चुतियापा, बदन करो भोले भाले लोगो को बेवक़ूफ़ बनाना.

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

लुक्का छिप्पी



रात के झीनी चादर तले , एकांत के पर्दों  के बीच, मैं जब तुम्हारे बारे में सोचता हूँ तो आस पास चमकने लगते हैं,  तुम्हारे साथ बीताये गए सुनहरे पलों के जुगनू। मैं हाथ बढ़ा कर उन्हें पकड़ने की कोशिश करता हूँ  पर हर बार की तरह मेरी मुट्ठी में जलता हुआ खालीपन ही हाथ आता है जिसकी तपिश  से मैं हर बार जल जाता हूँ. तुमसे बिछड़ने के वक़्त, जब मैं अपनी हथेलियों में तुम्हारे आँखों से झर रहे मोतियों को इक्कट्ठा कर रहा था, तब तुमने कहा था की मुझसे दूर हो जाने के बाद तुम चाँद से एक धागा लटकाओगी और मुझे खिंच लोगी। मैं रोज चाँद की तरफ एक छोटे बच्चे की तरह देखता हूँ की कोई धागा गिरेगा चाँद से।  पर अब तक चाँद से कोई धागा नहीं लटका पर हाँ चाँद से हर रोज खून टपकता है, तुम्हारे कसमों का खून, तुम्हारे किये गए वादों का खून।  तुम तो कहा करती थी की जब भी मैं तुम्हे याद करूँगा तुम सब कुछ भूल कर जहाँ भी होगी दौड़ी चली आओगी। मैं हर पल हर वक़्त तुम्हे याद करता हूँ पर तुम नहीं आती।  मुझे पता है की तुम दुनिया के किस ना किसी कोने से मुझे जरूर देखा करती होगी, मेरी खामोशियाँ सुना करती होगी। अगर ऐसा है तो तुम क्यूँ मेरे सामने नहीं आती, क्या तूम सचमुच की परी बन गयी  हो, अगर ऐसा तो फिर आ जाओ ना, परियों के पास तो जादुई छड़ी होती है. अबकी बार मैं वादा करता हूँ, कभी तुम्हारे साथ लुक्का छिप्पी का खेल नहीं खेलूँगा, और फिर कभी तुम्हे खुद से बिछड़ने नहीं दूंगा।

मंगलवार, 8 मई 2012

"एक अच्छा लेखक बनने से पहले हमें एक अच्छा पाठक बनना पड़ता है"

बड़े दिनों से मैं ये सोच रहा था की मुझे भी अब एक ब्लॉग  लिखना चाहिए पर मैं इसी असमंजस में था की मैं लिखूं तो क्या लिखूं, किस विषय पर लिखूं. दिमाग में चल रहे ये विचार मुझे अब तक लिखने से रोके हुए थे पर आज मैंने यह तय कर लिया की बिना व्याकरण, शैली, शिल्प और विषय वस्तु की परवाह किये बगैर जो मन में आएगा लिख डालूँगा.  और इसी लिए मैं आज इस ब्लॉग पोस्ट से पहली बार अपने ब्लॉग में कविता से अलग कुछ लिखने जा रहा हूँ.

बचपन से ही मुझे पत्रिकाएं, कॉमिक्स और उपन्यास पढने का शौक था हालाँकि  उस समय बालहंस, नन्हे सम्राट,
चम्पक, नंदन, नन्हे सम्राट इत्यादि  पत्रिकाएं ही पढने को मिलती थी. कॉमिक्स के नाम पर हम राज कॉमिक्स पढ़ा करते थे, नागराज, डोगा, ध्रुव, फाइटर टोड्स, परमाणु, एन्थोनी, गमराज, भोकाल,  और बांकेलाल ये हमारे चहेते कार्टून चरित्र हुआ करते थे. और उन् दिनों हम इन्ही चरित्रों से प्रभावित होकर हीरो विलेन का खेल भी खेलते थे जिसमे मैं हमेशा विलेन का किरदार निभाता था. उपन्यास की बात करें तो उस समय हमारी पहुँच पिनोकियो, ८० दिनों में विश्व यात्रा, गुलिवर'स ट्रेवेल्स तक ही थी और वो भी हमने इनका हिंदी अनुवाद ही पढ़ा था.  कुछ बड़ा होने पर सुमन सौरभ, क्रिकेट सम्राट, Reader's Disget, इत्यादि पत्रिकाओं के पाठक  बने और पढ़ते पढ़ते लिखने का शौक  भी पाल लिए. मैं उस समय सातवीं कक्षा का छात्र हुआ करता था जब मैंने अपनी पहली कविता लिखी थी. यह घटना मेरे जीवन की एक क्रांतिकारी घटना थी. जिसके प्रभाव ने से हम इतने प्रभावित हुए की आगे चलकर कवि बनने का सपना पल लिए. लेकिन जब कुछ बड़े हुए और जब पता चला की कविता किस चिड़िया का नाम है तब हमको आटे दाल का भाव मालूम चल गया और हम दिल से कवि बनने का ख़याल निकाल दिए, लेकिन कविता और साहित्य में रूचि बनी रही. लिखने का क्रम अब  भी जारी है पर सर से कवि बनने का भुत काफी हद तक उतर चुका है. अब ज्यादा समय पढ़ने में बितता हैं.

"एक  अच्छा लेखक  बनने से पहले हमें एक अच्छा पाठक बनना पड़ता है"

अरहान