रविवार, 19 अक्तूबर 2014

तुम

तुम हो
किसी प्राचीन कालीन शिला पे
किसी अजीब भाषा में लिखे अभिलेख की तरह
जिसे मैं किसी पुरातत्त्ववेत्ता की तरह
समझने की कोशिश करता हूँ 
पर समझ नहीं पाता
मैं तुम्हे मैं रख देना चाहता हूँ
अपने ह्रदय के संग्रहालय में
हमेशा के लिए संभालकर
इस उम्मीद के साथ की
दिल की धड़कने बंद होने से पहले
मैं समझ जाउंगा तुम्हे

आईना

तुम्हारा दायीं तरफ एक बड़ा आईना है 
तुम्हारे बायीं तरफ भी उतना ही बड़ा आईना है 
मान लो तुम्हारे दायीं तरफ के आईने को मैं जिंदगी कहता हूँ 
और बायीं तरफ के आईने को मौत 
अब जरा करीब से देखो दोनों आईने में बारी बारी 
तुम कितनी दफा मरते हो
कितनी दफा जीते हो
जिंदगी नामक आईने में है मौत
मौत नामक आईने में है जिंदगी
और उन्दोनो आईनो में हो तुम खड़े बेवक़ूफ़ की तरह
जिंदगी और मौत को समझने की कोशिस करते हुए
एक भ्रम एक illusion में गहराई तक डूबते हुए

परिया

रात के दो बजे आवारा लड़का बैठा है छत की मुंडेर पर
रोज की तरह फिर से घर छोड़ देने की धमकी देकर
भूखे प्यासे आसमान को ताकते हुए
लड़का आसमान को ताककर
अपने मोबाइल पर गूगल करता है fairies 
जानना चाहता है की कैसी दिखती है परियां
लड़के के 2G मोबाइल पर गूगल सर्च कम्पलीट होने से पहले
बाजू वाले छत से कूद के आती है एक लड़की
हाथो में दो रोटी और सब्जी लिए
उस दिन लड़के को गूगल के सर्च रिजल्ट आने से पहले पता चल जाता है
की कैसी दिखती हैं परियां
परिया भी आम लड़कियों की तरह आती है दुपट्टे ओढकर
सोती रातो में सबसे नजरें बचाकर
बिना पंखो के उड़कर
परिया भूखे पेट सोती हैं
औरो को अपने हिस्से का खाना खिलाकर

कविता


जो तुम्हारे काजल से घुलकर बन गयी स्याही
और लिखने लगी विरह की एक अंतहीन कविता

मैंने यूँ तो चूमा है कई दफा तुम्हारे चेहरे को
पर अफ़सोस उस दिन न छु सके मेरे होठ तुम्हारे आँखों को
अगर उस दिन मैं तुम्हे चूमता तो
शायद मिटा देता अपने होठो से वो विरह की कविता
लिख देता तुम्हारे चेहरे पर मुस्कराहट

देखो ना मैं वक्त के उसी जाल में उलझा
अब तक लिख रहा हूँ कविता
बस जब कभी तुम्हे तुम्हारे चेहरे पर मुस्कराहट लिखा दिखाई दे
मुझे इत्तेलाह करना
मैं उस दिन तोड़ लूँगा अपनी कलम

ऐ चाँद सुन जरा



ओ बीती हुई रातो के बासी चाँद
ज़रा झाँक के देख जमीन पे
क्या उस पागल लड़की ने फिर से जला लिए है अपने हाथ
तारे गिनते हुए
या फिर से किसी टूटते तारे ने, 
तोड़ा है उसकी बंद आँखों में सजता कोई सपना
या फिर से कोई मतवाली हवा
उड़ा ले गयी है उसके सारे प्रेम पत्र
और वो ढूंढ रही है कागज़ के गीले टुकड़ो को
हाथो में जुगनू पकड़ कर
ओ जागती रातो के ऊबते पहरेदार
जरा नजरे फेर उसके घर की खिड़की पर
और बता
की क्या अब भी उसकी झील सी आँखें
नम होती है किसी के इन्तजार में
क्या अब भी दौड़ पड़ती है वो दरवाजे की तरफ
हलकी सी आहट पर
क्या अब भी भीगा भीगा सा होता है उसके दुपट्टे का कोना
क्या अब भी उसके आंसू रुस्वा कर जाते हैं उसके काजल को
ओ आसमान के सबसे फरेबी आशिक
जरा बता दे उस पागल लड़की को
की मैं प्रतिक्षण उसकी तरफ बढ़ रहा हूँ
माना हूँ मैं अब भी उस से सैकड़ों प्रकाश वर्ष दूर किसी और आकाशगंगा में
पर देखना एक दिन जरूर टूट की गिर पडूंगा उसके घर के अहाते में
किसी भटके हुए उल्कापिंड की तरह

बेसुध रातों के आवारा नोट्स

यहाँ हंसने के लिए बस अपना चेहरा था 
और सबके माथे पर चिपका था आईना 

रात जब भी खांसते हुए, छाती पे जाते है हाथ 
हथेलिय महसूस करती है पुराने जख्मो के निशान 
शराब में डूबा मन, 
डायरी में लिख देता है की 
पिछली जन्म में मैंने किया था प्यार 
या फिर
मेरी यादाश्त बहुत कमजोर है
याद नहीं हो पाते पांच फोन नंबर
की हर नंबर डायल करने के बाद
प्यार में पागल किसी लड़की का प्रेत कहता है
"डायल किया गया नंबर मौजूद नहीं"

तकिये के नीचे शायद अब उतनी जगह बची नहीं
की दो लोग कर ले आराम बाहों में बाहें डाल कर
रो सके, हंस सके या गा सकें कोई फ़िल्मी गीत
इसलिए पहले जहाँ होते थे
पागल लड़कियों के गुलाबी ख़त
अब वहा नींद की गोलियां बना चुकी है अपनी सरकार

एक दिन गूंगा रहने में क्या जाता है
की जो लड़कियां रुमाल पर कढ़ाई कर के लिखती थी मेरा नाम
अब वो खरगोशों की मौत पर आंसू नहीं बहाती
अब वो नोच लेती है उन खरगोशो के चमड़े से रुई
और कानों में खोसकर बहरी हो जाती हैं

रात चाँद आसमान में उल्टा टंगा दिखाई देता है
वो पागल लड़की फिर से पहने घूम रही है झुमके उलटे कर के
अब उस पागल लड़की को रोना चाहिए
की अब इस से ज्यादा बंजर नही होना चाहिए किसी लड़के का दिल
अब इस तरह सूखने नहीं चाहिए फसले मोहब्बत की
अब इतनी बारिश तो होनी चाहिए की
लबालब भरा रहे किसी शराबी का ग्लास
और वो यूँ ही नशे में पागल होके
लिखता रहे कवितायेँ