शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

मेरे रात का एक हिस्सा


कभी तुम चुपके से चुरा लेना
मेरी रात का एक टुकडा
और सो जाना मेरे रात के हिस्से में
तुम्हे पता चलेगा की
चाँद के लाख चमकने के बावजूद भी
मेरी रातें कितनी अँधेरी हैं
चैनो सुकून के सारे साजो सामान के बावजूद भी
कितनी बेचैनी है मेरे रातों में
तुम्हे पता चलेगा की
क्यों मेरी चुप्पी
जलती है मेरी डायरी में
क्यूँ तुम्हारी बाते आते है मेरे शायरी में
क्यूँ मेरी रातों का कोई सवेरा नहीं होता
क्यूँ मेरे ख्वाबों के परिंदों का
कोई बसेरा नहीं होता
क्यूँ मेरे खयालो में तेरा नाम बसता है
क्यूँ हिज्र की आग में मेरा दिल जलता है
कभी तुम चुपके से चुरा लेना
मेरे रात का एक टुकडा
और सो जाना मेरे रात के हिस्से में
तुम्हे पता चलेगा की
तुम्हारे प्रति मेरा पागलपन कितना जायज और लाजिमी है
कितना बेसब्र है मेरे रात का हर एक पल
तुम्हारे बाजुओं में बीतने के लिए

ब्रजेश कुमार सिंह "अरहान"

सृजन


मुझे नहीं पता है भौतिकी के सिद्धांतो के बारे में 
ना ही मुझे विज्ञान की थोड़ी सी भी समझ है 
ना ही मैं न्यूटन हूँ 
ना ही आइंस्टीन फिर
पर फिर भी  मैं 
अपने छोटे से तंग अँधेरे कमरे में 
तुम्हारे जुल्फों से रात बना सकता हूँ 
तुम्हारे चेहरे से चाँद बना सकता हूँ 
तुम्हारी बड़ी बड़ी आँखों से 
टिमटिमाते सितारे बना सकता हूँ 
तुम्हारे सुर्ख गुलाबी होठों से 
फूल बना सकता हूँ 
है मुझमे इतनी काबिलियत की मैं तुम्हारे स्पर्श से 
एक नया संसार बना सकता हूँ 

ब्रजेश कुमार सिंह "अराहान"