शनिवार, 19 दिसंबर 2015

आईये रातों को सिराहने पे रख कर दीवारों पर सुबह रंग दे. ये सोच कर की ये दुनिया सच्ची नहीं है, वास्तविक नहीं है. हम दस मंजिले से कूद जाए. अपने शरीर से बहते हुए खून और उखड़ती साँसों को धोखेबाज कहते हुए हम सबको गन्दी गालियां दे. ऊपर पूल पर फर्राटे से भागती मेट्रो रेल में, बैठे लोगो की घर पहुँचने की जल्दबाजी, ईंट के टुकड़े रगड़ कर लिख दे. दो मिनट दुनिया को पॉज कर के, सबके घर में ताले लगा दें. इन तालों की सारी चाभियाँ नालों में फेंक दें. किसी सीसी टीवी कैमरे की फूटेज में किसी को चूमते हुए नजर आये और किसी बड़ी सोसाइटी के वाचमैन बन लड़कियों को घूरें. एक ठंडी चाय पीते हुए हम कॉलेज जाने वाले, नौकरी करने वाले, प्यार में पड़ने वाले गिरगिटों पर उपन्यास लिखें.  प्रेमिकाओं की आँखों से बारीकी से प्रेम निकालने का हुनर सीखे. आईये ये मान कर  की हम एक इच्छाधारी नाग है, हम सबकी शराब जूठी करते जाए. लाशों की जेब से पैसे चुराकर, हम मीठे हथियार खरीदें और  कब्रिस्तान में दफ़न बच्चों को बाँटें. किसी न्यूज़ चैनेल में लाइव इंटरव्यू देते हुए, सुन्दर एंकर के नाक पे घूंसे मारकर, मुस्कुराते हुए पूछे "आपको कैसा लग रहा है". आइए हम सभ्य समाज में थोड़ा सभ्य बने. आईये हम अपनी जेब का आखिरी नोट एक झूठ बोलते हुए बच्चे को दे दें और पैदल १५ किलोमीटर चल कर घर पहुंचे. आईये अपनी अच्छाई को गालियां देते हुए अपराध करें. आईये एकदिन सोशल एक्सपेरिमेंट करते हुए अपने अंदर के शैतान को जगा लें और राम का लिबास पहनकर रावणों के पुतले जलाएं. आईये एक दिन थोड़ा सा पागल होकर, सड़कों पे चिल्लाएं, भीड़ जुटाएँ, नारे लगाएं और बेहोश कर मर जाएँ. पागलों के सबसे बड़े भगवान के कहा है की उस पार की दुनिया बहुत खूबसूरत है.