शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

तितली

एक तितली देखी गयी, एक रोज उस बेरंग शहर में
एक सफ़ेद फूल पर मंडराते हुए
आश्चर्य से फटी रह गयी आँखें उस शख्स की जिसने देखा उस तितली को
अब तक रंग नाम की चीज से अनिभिज्ञ थे उस शहर के लोग
इसीलिए हजम नहीं कर पा रही थी उनकी आँखे तितली के रंग बिरंगे यौवन को
हर कोई हो रहा था बेचैन उस तितली को छूने को
हर किसी को रंगना था खुद की जिंदगी को
बिछाए जाने लगे जाल
सैकड़ों  हाथ तैयार होने लगे झपटने के लिए
सब को थी जल्दी
रंगने की
लाल हरे रंगों में ढलने की
और रंगने की सी जिद में
क़त्ल कर दी गयी वो तितली
बाँटे जाने लगे उसके रंग सबके चीज
पर हो ना पाया कोई रंगीन
सब ज्यों के त्यों बने रहे श्वेत श्याम
बस उनके हाथ रंगे रहे तितली के लाल खून से

ब्रजेश कुमार सिंह

०६-०७-२०१२