बुधवार, 25 जुलाई 2012

डर

मुझे अब मूंगफली खाने से डर लगता है 
मुझे अब गोलगप्पे खाने से डर लगता है 
मुझे अब श्याम टाकीज के नाम से भी डर लगता है 
मुझे अपने शहर के हर उस जगह से 
हर उस चीज से डर लगता है 
जिस से तुम जुड़ी हो 
मैं जुड़ा हूँ 
मुझे डर लगता है अब शादी के कार्ड से 
डर लगने लगता है मैं जब भी कहीं पढता हूँ श्री गणेशाय नम: 
अंदर खरोंच सी उठती है 
डर लगता है अब मैं जब भी देखता हूँ किसी लड़की को लाईब्रेरी से निकलते हुए
डर बढ़ जाता है जब उसके हाथों में देखता हूँ एरिक सीगल की लव स्टोरी वाली किताब
मुझे याद हम कुछ इस तरह ही मिले थे कभी
मेरे पास अब भी सहेज कर रक्खी हुयी है ये किताब
मुझे याद है की कैसे इस छोटे शहर में फल फूल रहा था हमारा प्यार
ना कोई काफी शॉप, ना कोई मॉल था यहाँ
पर हम मिल लेते थे हमेशा
कभी मूंगफली के ठेले के पास
कभी गोलगप्पे के खोमचे पर
कभी श्याम टाकीज के सबसे कोने वाले सीट पर
पर उस दिन न जाने क्यूँ तुमने मुझे बुलाया
शहर से दूर उस टूटे हुए पूल पर
जो मशहूर था शहर के हारे प्रेमियों के बीच
एक आत्महत्या करने के सबसे सुन्दर जगह के रूप में
मैं आया था उस पूल पर उस दिन
तुम भी आयी थी
हालाँकि ना तुम कुदी उस पूल से
ना मैं कुदा
लेकिन एक हत्या हुयी उस दिन
जब तुमने थमाया मुझे अपने शादी का कार्ड
कितने सुनहरे अक्षरों में लिखा था
तुम्हारा और उसका नाम
ये पढ़ने के बाद मेरे आँखों के सामने तैरने लगे
क्लास्स के डेस्क पर खुरच कर लिखे गए सारे "रवि लब्स रागिनी"
और धीरे धूमिल होते गया उसमे से "रवि"
और फिर पसरी रही देर तक खामोशियाँ
जिसे अहिस्ता आहिस्ता तोड़ने की कोशिश करती रही नीचे कलकल करती हुयी नदी
ख़ामोशी टूटी
तुम्हारे रोने के साथ
मेरा कुछ छूटा उस दिन तुम्हे खोने के बाद
तुम चली गयी पूल के उस तरफ
मैं चला गया पुल के उस तरफ
पर अब तक लटकी हुयी है उस पूल पर
मेरी तुम्हारी
अधूरी कहानी

ब्रजेश कुमार सिंह "अराहान"

२५.०७.२०१२