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मंगलवार, 18 मार्च 2014

साँसे फिर चलती नहीं थम जाने के बाद

साँसे फिर चलती नहीं थम जाने के बाद
हम जीते रहे ज़िन्दगी मर जाने के बाद 

ऐसा नही था की जीना नही आता था 
पर भला जी के भी क्या करते 
उनसे दूर हो जाने के बाद

मयखाने में इल्म हुआ की बेहोशी क्या चीज होती है
हमें होश आया मदहोश जाने के बाद 

वाकिफ ना थे वो की आग लगी है हमारे सीने में
जली उनकी साँसे हमारे जल जाने के बाद

ताउम्र जिसके इन्तेजार में रास्ता देखते रहे
वो आया भी करीब तो हमारे दफ़न हो जाने के बाद

अराहान

आग दिल में लगी रही

आग दिल में लगी रही
सीना ता उम्र जलता रहा


दूर होता रहा साहिल मुझसे 
ख्वाब दरिया का दिल में पलता रहा


उसको ही बना डाला अपना महबूब दिल ने
जिसकी नजरो में मैं हमेशा खलता रहा 


ख्वाहिश तो थी की कोई थाम ले हाथ जब भी गिरुं 
ठोकरे खाकर खुद गिरता संभलता रहा


सजदे में झुका था मैं भी खुदा के आगे
मुफलिसी का दौर यूँ ही चलता रहा 

जिस पे यकी था की साथ देगा मेरा
वो चेहरे पे चेहरा बदलता रहा

कोई तो होगा जो मेरा होगा अराहान
इसी उम्मीद में दिल ताउम्र बहलता रहा

अराहान

स्याह अँधेरी हैं रातें

स्याह अँधेरी हैं रातें
मिल जाए कहीं आफताब कोई

थाम के जिसका हाथ हम आगे बढ़ सके
मिल जाए ऐसा अहबाब कोई

एक शब डाल दो झोली में मेरी वस्ल की
पलकों से हम बुन लें ख्वाब कोई

मुद्दतें हुयी आँखें उनसे मिली नहीं
एक पल के लिए उसके चेहरे से हटा दे हिजाब कोई

आग ठंडी से पड़ने लगी है दिल के अंजुमन में
अपने होठों से पिला दे तेज़ाब कोई

हम सारी उम्र बिता देंगे उनके इन्तजार में अराहान
बस एक बार वो दे दे मेरे खतों का जवाब कोई

अराहान

रविवार, 25 अगस्त 2013

क्या जरुरी है

क्या जरूरी है की 
इश्क करें 
और बेक़रार हो जाएँ 
चोरी करें 
और फरार हो जाएँ 
जुर्म करें 
और गिरफ्तार हो जाएँ 
भलाई करें 
और कुसूरवार हो जाएँ 
इन्तजार करें 
और चौकीदार हो जाएँ 
कहानी लिखें 
और कहानीकार हो जाएँ 
दिन काटे सोकर 
और बेकार हो जाएँ 
देते रहें मशवरे 
और सलाहकार हो जाएँ 
बिक जाएँ सियासत में 
और पत्रकार हो जाएँ 
बन जाएँ सनसनीखेज खबर 
और अखबार हो जाएँ 
क्या जरुरी है की
हम लड़ें अपने हक के लिए 
और गुनाहगार हो जाएँ 
इन से तो भला है की चुप रहें आँख मूंदकर 
और भारत की सरकार हो जाएँ 

अराहन 

शनिवार, 22 जून 2013

थोड़ी सी जगह दे दो अपनी बाहों में

थोड़ी सी जगह दे दो अपनी बाहों में
लिपट कर तुमसे रोना है मुझे

पा लिया है सबकुछ तुम्हे पाकर
अब अपना सब कुछ तुम पर खोना है मुझे

टूट गए थे जो सपने तुमसे जुदा होकर
तुम्हारे आँखों से उन सपनों को अब संजोना है मुझे

रो लेने दो मुझे तुमसे लिपट कर
आंसुओं से अपने जख्मों को धोना है मुझे

रूठ जाने दो सावन को मुझे उस से क्या लेना देना
अब तुम्हारे मोहब्बत की बारिश में खुद को भिगोना है मुझे

काट ली है हमने वो बेचैन रातें हिज्र की
तुम्हारे नैनों के समंदर में खुद को डुबोना है मुझे

थोड़ी सी जगह दे दो अपनी बाहों में
लिपट कर तुमसे रोना है मुझे

अराहान 

ना फिर इधर उधर जवाब की तलाश में

ना फिर इधर उधर जवाब की तलाश में
कभी खुद से भी कुछ सवाल कर

जररी नहीं हर चीज को दिमाग से तौलना
कभी कभी अपने दिल का भी इस्तेमाल  कर

चीख चीख कर करता है चैन-ओ-सुकून की बाते
पहले अपने दिल में अमन बहाल कर

चल कर ले अपना सीना छलनी सच्चाई के तीरों से
और झूठ के महलों में रहनेवालों का जीना मुहाल कर

लोग तुझे जहन्नुम से भी खिंच लेंगे अराहान
पहले तू अपने नाम का जर्रा जर्रा बेमिशाल कर

अराहान 

अच्छा लगेगा

अपने अश्कों में तुमने छिपा रखा है अपना दर्द
कभी रो भी लो अच्छा लगेगा

तुम वक़्त के हाशिये पर लिखते हो अपनी कहानी
कभी वक़्त के साथ चलकर देखो अच्छा लगेगा

तुम पूछा करते हो उनसे अपने बारे में
कभी खुद से करो सवाल, अच्छा लगेगा

कितना खोया है तुमने पाने की कोशिश में
एक दफा बिछड़ों से गले लगाकर देखो, अच्छा लगेगा

ये किसके जाने का है मातम जो संजीदा हो
भुलाकर सबकुछ मुस्कुराकर देखो, अच्छा लगेगा

ज़माने में है और भी लोग किस्मत के मारे जो जीते हैं शान से
अंदाज उनलोगों का अपनाकर देखो अच्छा लगेगा

कुछ तुमको भी है दर्द, कुछ हमको भी है अराहान
आओ हमसे अपना दर्द बाँट कर देखो, अच्छा लगेगा

अराहान

तू मेरा रंग देख, मेरा मिजाज देख

तू मेरा रंग देख, मेरा मिजाज देख
मैं तुझसे इश्क करता हूँ
तू मेरा अंदाज देख
क़दमों में बिछा दिए हैं तेरे,
सारे जहाँ की खुशियाँ
शक है तो तू अपना कल देखा अपना आज देख
मैं खामोश हूँ
इसका ये मतलब नहीं की मैं बोलता नहीं
तेरे होठों पर बिखरे हैं मेरे अल्फाज देख
मत सोच की क्या होगा अंजाम मेरी मोहब्बत का
तू बस मेरे इश्क का आगाज  देख

अराहन

तू समझ या ना समझ

तू समझ या ना समझ
अब सबकुछ मैं तेरी समझदारी पर छोड़ता हूँ
दुश्मनों की तादाद बढ़ रही है मेरी दुनियां में
अब सबकुछ मैं अपना तेरी यारी पर छोड़ता हूँ
चोट खाया है हमने मजबूत बनने की हर कोशिश पर
अब सबकुछ मैं अपना, अपनी लाचारी पर छोड़ता हूँ
मर्ज बढ़ता ही जा रहा है, तीमारदारों की तीमारदारी से
अब सबकुछ मैं अपना, अपनी बीमारी पर छोड़ता हूँ
लोग कहते हैं मैं बेकार होने लगा दिन-ब-दिन
अब सबकुछ मैं अपना, अपनी बेकारी पर छोड़ता हूँ
याद रखना तुम की, तुमको ही मुझे फिर से बनाना है
अब सबकुछ मैं अपना तेरी जिम्मेदारी पर छोड़ता हूँ
आंसूं छिपाने हैं मुझे बारिश में भींगकर
अब सबकुछ मैं अपना मौसम की खुशगवारी पर छोड़ता हूँ
मैं अपना सबकुछ सौंपकर तुम्हे जा रहा हूँ
देख मैं अपना अक्स तेरी चाहरदीवारी पर छोड़ता हूँ

अराहान  

सोमवार, 13 अगस्त 2012

कोई था

Photo Courtsey: Tumblr.com
कोई था जो हमारी शामें गुलजार किया करता था 
कोई था जो दरिया किनारे हमारा इंतज़ार किया करता था 
कोई था जो हम पे अपनी जान भी निसार करता था 
कोई था जो हम से भी प्यार करता था 

कोई था जिसके आने से ख़ुशी लौट आती थी 
कोई था जिसके जाने से आँखें नम हो जाती थी
कोई था जिसका तस्सव्वुर में आना जाना था 
कोई था जिसका ये दिल भी दीवाना था 
कोई था जो छिप चीप के हमारा दीदार किया करता था
कोई था जो हमारी सलामती के लिए अपनी खुशियाँ दरकिनार करता था
कोई था जो हमसे भी प्यार करता था

कोई था जिसका थाम के हाथ हम हर सीढ़ी चढ़ लेते थे
कोई था जिसकी आँखो में हम हर बात पढ़ लेते थें
कोई था जिसके लिए धड़कता था हमारा दिल भी
कोई था जो था हमारा रास्ता भी मंजिल भी
कोई था जो नजरो से हमारे दिल पे वार करता था
कोई था जो हमसे भी प्यार करता था

कोई था जो दिया बन जाता था अँधेरे में
कोई था संग हमारे हर शाम हर सवेरे में
कोई था संग हमारे सावन की घटा, वसंत की पुरवाई में
कोई था संग हम में हमारी परछाई में
कोई था जो हमको 'दूरियो से दूर बार बार किया करता था
कोई था जो हमसे भी प्यार करता था

कोई था जिसने संग हमारे खुशियो के बीज बोये थे
कोई था जिसने हमसे जाने कितने सपने संजोये थे
कोई था जिसने हमसे लाल जोड़े की, की अर्जी थी
पर सफ़ेद कफन था उसके नसीब में भगवान् की यही मर्जी थी
कोई था जिसके लिए हम पहली बार टूटे थे
बंद भीतर, दिल के जज्बात आँखों से टूटे थे
कोई था जो हमारे आंसूओं का ऐतबार किया करता था
कोई था जो हमसे भी प्यार करता था

कोई था जिसको ये दिल हर वक़्त याद किया करता है
गम भूलाने के लिए मयखाने आबाद करता है
वो जब भी हमें तनहा पाती हैं
हवाओं के संग पता नहीं कब चली आती है
बादलो और हवाओं में उसके अक्स का ये दिल दीदार करता है
कोई था जिसको ये दिल भी प्यार करता है

अराहान

गुरुवार, 10 मई 2012

हर सपना यहाँ टूट जाता है

पत्थरों की पहुँच हो गयी है आसमान तक
हर सपना यहाँ टूट जाता है

हवाओं में घुल रहा है सियासी जहर
आम आदमी का दम घुट जाता है

अफसरों की जेब में आराम फरमाता है राहत राशि का पैसा
गरीब आदमी यहाँ भी छूट जाता है

इक कोहराम मचने की चाह जन्म लेती है जेहन में
जब सब्र का पैमाना फूट जाता है

दूसरों की भलाई में लगा है 'वो' जब भी
उसका कोई अपना रूठ जाता है

जो भी बनते है 'कर्ण' यहाँ
उनका कवच कुंडल लूट जाता है

ब्रजेश कुमार सिंह "अरहान"





शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

एक गजल



दूर आसमान में जंवा हो रहा एक चाँद
इधर जिंदगी का सूरज ढलता जा रहा है

कोई इत्तेलाह उन्हें भी कर दे की 
उनको पाने का ख्वाब दिल में पलता जा रहा है

हम इसी फिराक में हैं की शाम ढलने से पहले घर को जाएँ
इधर वक्त का पहिया बढ़ता ही जा रहा है

खुद को बनाने की कोशिश है कैसी
जो सबकुछ अपना बिगडता जा रहा है

हम अपनी बात उसे बताएं कैसे
वो अपनी ही कहानी कहता जा रहा है

उसको पुकार रहें हैं हम कितनी देर से
 वो है की अपनी धुन में चलता जा रहा है

ऊपर आसमान बाहें फैलाये खडा है
पंक्षी पिंजड़े में तडपता जा रहा है

कोई खोल क्यूँ नहीं देता ये पिंजडा
पंक्षी के दिल में बगावत का शोला भडकता  जा रहा है

अब नहीं याद आते है दादी नानी के किस्से
जवानी की दहलीज में बचपन बिछड़ता ही  जा रहा है

ढल जायेगा सूरज यूँ ही, रास्ता दिखा दे उसे अरहान
मंजिल की तलाश में मुसफोर भटकता ही जा रहा है

ब्रजेश कुमार सिंह "अराहान'


सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

बड़ी मुश्किलें है इस जमाने में

बड़ी मुश्किलें है इस जमाने में 
अरसों लग जाते हैं कुछ पाने में 
हम तो यूँ ही खुद को लुटा बैठे 
लोग कहते हैं कुछ बचा नहीं इस दीवाने में 

फूल खिलतें थे कभी हमारे भी आशियाने में 
शख्शियत थी हमारी भी किसी ज़माने में 
हमदर्द थी दुनिया भी हमारी तब 
आज कतराते है लोग हमारे पास आने में 

देर होने लगी थी अब उनके भी आने में 
इंतज़ार फिर भी कर लेते थे हम जाने अनजाने में 
उन्होंने अपनी वफ़ा का ऐसा सुबूत दिया 
अफ़सोस होता है हमें उनको भी आजमाने में 

सुकून मिलता है हमें अब खुद को छिपाने में 
खुशियाँ ढूंढता हूँ अब अफ़साने में 
खामोशी में  जीना सिख लिया है हमने 
महफिले सजती है अब वीराने में 

ज़िन्दगी बस्ती है अब मयखाने में 
कुछ मदद मिलता है यहाँ सबकुछ भुलाने में 
बुला ले ऐ खुदा मुझे अपने पास 
अब तू भी दिल न लगा मुझे तड़पाने में 

बदल गयी है तेरी दुनिया ओ उपरवाले 
सबकी ख़ुशी है अब कुछ ना कुछ पाने में 
आज हम भी खुश होते 
अगर कल खुश न होते 'लुटाने' में 

मौत जी लेते हैं हम ज़िन्दगी के बहाने में 
एक दर्द ही है जो साथ है हर पल 
दिल्लगी नहीं किसी की हमारे पास आने में 
अब तो बस धडकनों के थमने का इंतज़ार  है ऐ खुदा 
क्यूंकि बड़ी मुश्किलें है तेरे इस जमाने में 

ब्रजेश सिंह

ख्वाहिशें

तन्हा, तन्हा हैं हम
तन्हा हैं ख्वाहिशें 
मंजिल- मंजिल ढूंढते फिरे 
पर मंजिल हैं 'ख्वाहिशें' 
खुला, खुला एक आसमां है ऊपर \
पर पंख हैं 'ख्वाहिशें'
जिंदा- जिंदा, दिल है
पर ज़िन्दगी है 'ख्वाहिशें'
काली काली रात है 
एक सवेरा है 'ख्वाहिशें'
इंसान- इंसान हर जगह 
पर इंसानियत हैं 'ख्वाहिशें'
मंदिर- मस्जिद हर तरफ 
पर इबादत है 'ख्वाहिशें' 

ब्रजेश सिंह 

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

अज़नबी

अपनों के शहर में अनजान हूँ।
गुमनामी कि मै पहचान हूँ।
तंग अंधेरी गलियों मे सिमटा
रौशनी का अरमान हूँ।

वो चिंगारी हैं जलाना उनकी फ़ितरत है।
ये जानते हुये भी कि वो जलातीं हैं।
जलना हमारी हसरत है।
खुद जल के अंधेरा दूर कर रहा
मैं सिरफिरा कैसा इंसान हूं।
अपनों के शहर में अनजान हूँ।

तन्हाई के मरुस्थल में कांटो कि चुभन है।
रेतीली हवावों में अजीब सी घुटन है।
अपनेपन कि पिपासा है।
कहीं दूर दिख रहा है सरोवर, मुक्ति कि आशा है।
मरिचिकाओं का पीछा कर रहा,
हक़ीकत से अनजान हूँ।
अपनों के शहर में अनजान हूँ।

भीड़ में भटक रहा, कहने को सबके संग हूँ।
भेदती है अपरिचित निगाहें, जाने किस समाज का अंग हूँ।
प्रत्यक्ष के माधुर्य, परोक्ष के कटुता से दंग हूँ।
जले पे नमक छिड़के वो फिकी मुस्कान हूँ।
अपनों के शहर में अनजान हूँ।

यहॉ आस्तित्व के मेरे, किसी को भान नही,
शून्य हूँ यहाँ पर भगवान नही।
दुखों का उत्थान हूँ,
खुशियों का अवसान हूँ।
अपनों के शहर में अनजान हूँ।

ब्रजेश सिंह