उनकी नजरो के जबसे हैं शिकार बने
तबसे मर्ज-ए -मोहब्बत में हैं बीमार बने
वो पलट के पूछते भी नहीं हाल हमारा
हम ही मरीज और हम ही तीमारदार बने
हंटर चला देती हैं हम पर इनके जैसी शोख हसीनाएं
बेशर्म हम हैं जो इन जैसो के आशिक हर बार बने
जबसे शौक़ चढ़ा है उनको रंगीन चुन्नियों का
तबसे हम खुद में ही एक मीना बाजार बने
मुस्कुराकर कभी जिसने हमको देखा भी नहीं
हम है की उनकी मुस्कराहट के तलबगार बने
जबसे पिया है एक कतरा उनके शरबती आँखों का
तबसे हम हैं आबशार बने
रात दिन है आस की वो आएंगे करीब
घर की चौखट पे खड़े खड़े हम चौकीदार बने
सुनायी देती है कानो में जबसे उनके सांसो की मौसीकी
उनके सरगम में उलझे हम सितार बने
छीनने लगी हैं वो छनकाके पायल, करार हमारा
उनकी कदमो की आहट सुनकर हम बेकरार बने
इश्क के अंजुमन में ऐसे हुए हम गिरफ्तार
की काबिल से बेकार बने
ऐसा लुटाया हमने उनपे अपना सबकुछ
दुनिया की बात छोडिये हम खुद के है कर्जदार बने
इतनी मोहब्बत , फिर भी हासिल कुछ नहीं
हम चाइनीज सामानों के खरीदार बने
"एकतरफा इश्क " शीर्षक से छपी एक कहानी
हम कहानी के एक अहम् किरदार बने
डूब गए गुमनामी के समंदर में
इश्क में हम जो इतने वफादार बने
वो बेखबर मेरे इश्क से, माशूका बन गयी किसी और की
और हम देवदास के दिलीप कुमार बने
अराहन